________________ मांग करी ! एक ने पैसे की मांग की। दूसरे ने सोने की और तीसरे ने छापा मारने की। क्योंकि तीसरा इन्कमटैक्स ऑफीसर था। हमारे प्रभु कैसे हैं कुछ भी नहीं देते हैं उनके अधिष्टापक देव ही सब कुछ देते हैं। देव ने आकर तथास्तु कह दिया। तीनों भक्तों ने जो मांगा वह प्राप्त हो गया। एक दिन तीनों के घर चोर आ गये और सारा माल सामान चुरा कर ले गये। अब तीनों भिखारी बन गये कुछ भी पास में नहीं रहा। इसी प्रकार की दशा हमारी बनी हुई है। आज दिन तक मांगते आये, मांगते आयें फिर भी खाली की खाली शेष कुछ भी बचा ही नहीं। जो दस वीस पंचास भये, शत होई हज़ार तु लाख मांगेगी। कोटि अरब असंख्य धरापति होने की चाह जगेगी। स्वर्ग पाताल का राज्य करूं, तृष्णा अधिकी अति आग लगेगी। सुन्दर एक संतोष बिना शठ तेरी तू भूख कभी न मिटेगी॥ आज हम करोड़पति है तो आगे असंख्य पति होने की चाह जगती है। समझ नहीं पाते क्या अवस्था है हमारी। पैसे के पीछे दौड़ लग रही है। स्वयं का ठिकाना नहीं क्या अवस्था बना रखी है ! यहां तक कि बाप बच्चों को जान नहीं पाते और बच्चे बाप को पहचान नहीं पाते यह दशा है आज के युग की। पिताजी प्रातः जल्दी उठ कर कार्य पर चले जाते है और रात को देरी से आते है जब तक बच्चे सो जाते हैं सुबह पिताजी के जाने के समय बच्चे सोते रहते है बाद में उठते हैं। रविवार को छुट्टी रहती है तो सुबह से ही टी.वी. चालू हो जाता है उसमें इतने मशहूल बन जाते है कि एक दूसरे की तरफ़ दृष्टिपात ही नहीं। बच्चों में संस्कार आये तो कहां आये / आज दिन तक कर क्या पाये अपने बच्चों के भविष्य को गर्त में डाल रहे हैं। इसलिए कहा गया है कि: "माता शत्रुः, पिता वैरी, येन बालो न पाठितः न शोभते सभामध्ये, हंस मध्ये बको यथा॥" Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org