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________________ 93 “अज कुलगत केसरी लहेरे, निजपद सिंह निहाल // तिम प्रभु भक्ते भवि लहेरे, आतम शक्ति संभाल / अजित जिन तारजो रे, तारजो दीन दयाल // " देवचन्द्र जी महाराज केवली रूप में महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे हैं। उन्होंने दूसरे भगवान श्री अजित नाथ स्वामी के स्तवन में फरमाया है कि बकरियों के समूह में एक शेर का बच्चा था। नित्य प्रति समूह के साथ नदी पर पानी पीने जाता था / एक दिन क्या हुआ नदी पर शेर भी पानी पीने आया। उसकी आवाज़ को सुनकर बकरियों का समूह भाग गया लेकिन शेर का बच्चा वहीं पर खड़ा रहा। आज दिन तक बकरियों के समूह में रहने से मुंझें अपने स्वरूप का भान नहीं हुआ कि मैं कौन हूँ! शेर का बच्चा तो शेर को देखकर भी निर्भीक रूप वहीं खड़ा रहा। उसके मन में जरा भी डर नहीं था। शेर के बच्चे ने मन में सोचा यह कौन प्राणी है जो इसे देख कर मेरा सारा समूह भाग गया। यह कौन है ? और भागने वाला टोला कौन था और मैं स्वं कौन हूँ। उन दोनों के बीच उसने अपनी तुलना करी फिर निष्कर्ष पर पहुंच गया कि मेरा रूप तो इसके जैसा है। जो टोला भाग गया वह मेरा रूप नहीं। आज दिन तक मैं उसके सम्पर्क में रह कर अपना स्वरूप भूल गया था। अब मैं अपने स्वरूप में आ गया हूँ अब मुझे किस बात का भय ? जिस प्रकार वह शेर का बच्चा मन में विचारता है उसी प्रकार आप भी वीतराग प्रभु के पास जाकर अपनी तुलना करो कि हे प्रभु मैं भी आपकी शक्ति (आत्मा) के समान हूँ। परन्तु मेरी आत्मा पर पर्दा पड़ गया है। मेरा सम्पर्क संसारियों के टोले से हो गया है। मुझे अब आपके रूप को देखकर अपना रूप पहचानना हैं। हमें प्रभु से भीख मांगनी चाहिए कि हे प्रभु आपके स्वरूप समान मेरा स्वरूप बन जायें। लेकिन हम भगवान के सामने क्या मांगनी करते है-धन की, वैभव की, रूप की, जन की आदि। एक बार तीन भक्त भगवान के पास आये। तीनों ने अलग 2 वस्तु की Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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