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________________ (११.आत्मानुभूति सोओ मत जागो! अनादि काल से सोते आये हैं। जागने की क्रिया योगियों की हैं, और सोने की क्रिया संसारियों की हैं। जागना कैसा ? आत्मा का चिन्तन निरन्तर हो सतत हो / उसका नाम ही जागना यानि अप्रमादी अवस्था / स्व चिन्तन में रहना ही अप्रमादी अवस्था है, पर का परिपेक्षण करना, चिन्तन करना यह है प्रमादी अवस्था यानि सोने की अवस्था। रात को नींद में भी सतत आत्मा का चिन्तन चले उसी का नाम है जागृत अवस्था / अनादि अनंत समय व्यतीत हो गया सोते चले आ रहे है। आज दिन तक सांसारिक विषय-वासनाओं में लयलीन रहे, पर पदार्थो के प्रति आसक्त रहे लेकिन अभी तक अनासक्त अवस्था आई नहीं अनासक्त अवस्था को लाना है ! जैसे समकित धारी जीवणो, करें कुटुम्ब प्रतिपात अन्तर से न्यारो रहे, ज्यों धाय खिलावें वाल॥ समकित धारी जीव(प्राणी)संसार में रहता है परन्तु उसकी अवस्था धाय माता के समान होती है। मां दो प्रकार की होती है। एक जन्म देने वाली और दूसरी पालन करने वाली। धाय माता पालक मां कहलाती है ! वह बच्चे के सब कुछ कार्य करती है, स्नान कराती हैं, दूध पिलाती है, खिलाती है, प्यार भी देती है लेकिन उसके मन में यह विचार चलता रहता है कि यह बच्चा मेरा नहीं है। संसार में हमको भी इसी प्रकार रहना चाहिए। सभी कुछ सांसारिक कार्य करते हुए भी उसमें लयलीन अवस्था न हो। उसमें ओत-प्रोत न हो मन में यही चिन्तन चलना चाहिए कि यह कार्य मुझें करना पड़ता है इसीलिए मैं करता हूँ, कार्य करते हुए भी स्व स्वरूप का निरीक्षण करते रहना चाहिए। जैसा कि देवचन्द जी महाराज ने अजित नाथ भगवान के स्तवन में कहां हैं कि Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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