________________ क्षय हो जाने से उनकी दृष्टि में राग का राग नहीं था / उदासीन भाव था। यही कारण है कि वे संसार में रहे, संसार के भोग भी भोगे और भयंकर युद्ध भी किये। यह सब होते हुए भी उनकी क्षायिक सम्यक् में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आया। जीवन की पवित्रता, उज्जवलता और महानता तभी प्रगट होती है जब कि बाहर में वस्तु का राग होते हुए भी अन्दर में राग के प्रतिपक्ष वैराग्य की पवित्र धारा प्रवाहित हो। और अनासक्ति का महासागर लहराता हो। मनुष्य के जीवन में चिन्तन और अनुभव जितना सूक्ष्म एवं आत्मस्पर्शी होगा तो जीवन में उतना ही अधिक आनन्द और उल्लास प्रगट होगा। ***** Jain Education Internationerivate & Personal Usenany jainelibrary.org Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org