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________________ हिन्दी के कहानी पनन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन (१) भगवान महावीर का जीवन : जैन मान्यतानुसार वर्तमान अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरो की जिस परंपरा का आरंभ आदिनाथ भगवान ऋषभदेव से हुआ था, उसके अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हुए। पूर्व तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के पश्चात् ढाई शताब्दि के अन्तराल से भगवान महावीर का प्रादुर्भाव हुआ। वह समय ईसापूर्व छठी शताब्दी का था। अर्थात् आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व भगवानने दिग्भ्रान्त मानवों को कल्याण का मार्ग बताया । तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के पश्चात् धर्मानुशासन में जो विच्छंखलता और शिथिलता आ गयी थी, भगवान महावीर ने उसको दूर किया और जैन धर्म को पुनः सशक्त रूप में स्थापित कर दिया। तथा तत्कालीन युग के अनुरूप बना दिया। भगवान की यह धर्म उन्नयन की सफल भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि भ्रमवश उन्हें जैन धर्म का संस्थापक ही कह दिया जाता है। भगवानने धर्म संघ की स्थापना कर तीर्थंकरत्व को प्राप्त किया ही, साथ ही वे लोकोपकारी, मार्गदर्शक भी थे। इस दृष्टि से उन्हें यथार्थ ही में लोकनायक कहा जा सकता है। वीर जन्म के पूर्व की स्थितिः ___ भगवान पार्श्वनाथ के ढाई सौ वर्ष पश्चात् भगवान श्री महावीर 'चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में भारत-वसुधा पर उत्पन्न हुए। उस समय देश और समाज की दशा काफी विकृत हो चुकी थी। मानव दानव बन चुका था। धर्म, संस्कृति, सभ्यता एवं ज्ञान के नाम पर मूक पशुओं के प्राण बलिदान कर उनके जीवन से खिलवाड़ कर रहा था। पंथवाद एवं जातिवाद के नाम पर इतनी अराजकता फैल रही थी कि मानवता की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। स्त्री जाति का पतन मनुष्य के हाथों से पूर्ण रूप से हो रहा था। उनका सामाजिक स्थान नगण्य था। गृहलक्ष्मी अब गृहदासी ही बन गई थी। मनुष्य की राक्षसी प्रवृत्ति ने मानवीय आदर्शो का गला घोंट दिया था। शूद्रों की स्थिति पशुओं से भी गई गुजरी थी। वह नफरत की निगाह से देखा जाता था। भगवान पार्श्वनाथ का शासन चल रहा था, पर उसमें भी वह शक्ति नहीं रही थी कि पाखण्ड की आंधियों को रोक सके। महामुनि केशीकुमार श्रमण का चिंतन चल १. ( पास जिणाओ य होइ वीर जिणो अड्वाइज्जसएहिं गएहिं चरिमो समुप्पन्नो।आवश्यक नियुक्ति (मलय). पृ.२४१, गा.१७. आवश्यक चूर्णि, गा. १७, पृ.२१७. (ख) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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