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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
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निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि कवि की यह सफल कृति है। भाषा और भाव की दृष्टि से अद्वितीय रचना है । काव्य को लिखकर कविने साहित्य की महान सेवा है जो समाज इस कवि का ऋणी रहेगा ।
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वर्धमान पुराण
- कवि नवल शाह
प्रस्तुत ग्रंथ का नाम वर्धमानपुराण है । इसके रचयिता कवि का नाम नवल शाह है। उन्होने आचार्य सकलकीर्ति के वर्धमान पुराण के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की है । इस ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय का परिचय इसके नाम से ही हो जाता है ।
यह खड़ी बोली का एक सरल काव्य ग्रंथ है। इसमें १६ अधिकार है। भगवान महावीर के पूर्व भवों और वर्तमान जीवन का परिचय प्रस्तुत किया गया है । सोलह अधिकार रखने का कारण बताते हुए कविने बड़ी सरस कल्पनाओं का आधार लिया है । तीर्थंकर माताने सोलह स्वप्न देखे थे, महावीर ने पूर्वभव में सोलह कारण भावनाओं का चिंतन करके तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया था, उपर १६ स्वर्ग है, चन्द्रमाकी १६ कलाओं के पूर्ण होने पर ही पूर्वमासी होती है, स्त्रियों के सोलह श्रृंगार बताये गये है, आठ कर्मों का नाशकर आठवीं पृथ्वी मोक्ष मिलती है। यह ग्रंथ भी सोलह मास में ही लिखा गया इस सब कारणों से ग्रंथ में १६ अधिकार दिये हैं । वास्तव में कवि की यह कल्पना सुंदर है ।
इस ग्रंथ के प्रथम अधिकार के पुराण परम्परा के अनुसार मंगलाचरण के अनन्तर वक्ता और श्रोता के लक्षण दिये गये हैं ।
द्वितीय अधिकार में भगवान महावीर के पूर्व भवों में से एक भव के पुरूरवा भील द्वारा मद्य - मांसादिक के परित्याग, फिर सौधर्म स्वर्ग में देव पद की प्राप्ति, तीसरे भव में चक्रवर्ती भरत के पुत्र रूप में मरीचि की उत्पत्ति और उसके द्वारा मिथ्यामत की प्रवृत्ति, फिर ब्रह्म स्वर्ग में देव पर्याय की प्राप्ति, वहाँ से चयकर जटिल तपस्वी का भव ततपश्चात् सौधर्म स्वर्ग की प्राप्ति, फिर अग्निसह नामक परिव्राजक का जन्म, वहाँ से चयकर तृतीय स्वर्ग में देवपद वहाँ से भारद्वाज ब्राह्मण, पाँच वें स्वर्ग में देव पर्याय, फिर असंख्य वर्षो तक निम्न योनियों में भ्रमण आदि का वर्णन किया है।
तृतीय अधिकार में स्थावर ब्राह्मण, माहेन्द्र स्वर्ग में देव, राजकुमार विश्वनंदी और उसके द्वारा निदान बन्ध दसवें स्वर्ग में देव, त्रिपुष्ठ नारायण, सातवे नरक में नारकी
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