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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
२५ का ज्ञान उसमें झलकने लगता है। वह बड़े से बड़े कष्ट, दुःख, वेदना, परिषह, सहन कर क्षमा का दान देकर मानों लोगों को सहनशक्ति एवं सत्य के लिए समर्पण की प्रेरणा देते है। पूर्णज्ञान की उपलब्धि प्राप्त करके वह जगत के लोगों को ज्ञान के आलोक की ज्योति प्रदान करता है। वह धर्म सभाओं द्वारा ज्ञान का प्रसार करता है। तीर्थ की स्थापना करता है। नए युग, नए ज्ञान के प्रकाश की किरणें बिखेरता है और अंत में अपने आत्मा के समस्त दोषों से मुक्त होकर संसार भ्रमणों के कारणों से मुक्त होकर सिद्धत्व की अंतिम मंजिल पर प्रतिष्ठित हो जाता है। उसके निर्वाण के बाद भी युगों तक उसके सिद्धांत जनजन के पथ दर्शक बने रहते हैं।
जैन मान्यता के अनुसार ये पांच कल्याणक मनाये गये इन्हीं का भक्ति पूर्ण साहित्यिक वर्णन मुनिश्री ने किया है। उन्होने महावीर के पूर्व भव नन्दनमुनि के मासोपवास का वर्णन किया है एवं तदनन्तर देवानन्दा के गर्भ में ८२ दिन तक रहने का वर्णन श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार किया है।
उत्तम तीर्थंकर गौत्र का जीव माता के गर्भ में आते ही उनके कारण माता उत्तम चौहह स्वप्न देखती हैं। ये स्वप्न प्रतीकात्मक होते हैं जो अवतरित बालक के रूप, गुण, शिक्षा, प्रतिष्ठा, लोक कल्याण संयम तथा मुक्ति के प्रतीक होते हैं । गर्भस्थ शिशु के समाचार जानकर इन्द्र कुशल देवांगनाओं को माता की सेवा मे नियुक्त करती हैं। चारों दिशाओं में सुख, समृद्धि और वसंत का आनन्द छा जाता हैं । अकाल आदि दूर हो जाते हैं। प्रजा धन-धान्य से सुखी होती है। वातावरण में धर्ममय, सुखमय, परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता है।
चैत्र मास की त्रियोदशी के दिन महावीर का जन्म होता है। तीनों लोकों में आनंद छा जाता है। छप्पनकुमारियाँ दशों दिशाओं से माता की सेवा के लिए, जन्मोत्सव की खुशी मनाने के लिए आ जाती है। जननी और पुत्र को स्नान कराती हैं, विविध प्रकार के नृत्य करती हैं, गीत गाती हैं। तीर्थंकर के जन्म से इन्द्र का आसन डोलता है। वह अनेक देवों के साथ क्षत्रिय कुण्ड में आता है और सभी देवगण अभिषेक के लिए शिशु महावीर को सुमेरु पर्वत पर ले जाता है। सौधर्म इशान आदि इन्द्र प्रभु को गोदी में लेकर बैठते है। और प्रभु का क्लशों से अभिषेक करते हैं। देवांगनायें मधुर गीत गाती
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दिगम्बर सम्प्रदाय में सोलह स्वप्नों का उल्लेख हैं।
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