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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
छम छम पायल बजती किंकिनियाँ कलखसा माता के मन आनंद भरती'
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लाला चलता चाल घुंटनियाँ ।
माता से बालक कहता है कि है माँ ! मुझे चन्दा दे दो, मैं खेल खेलूंगा -
मच गया शिशु दे मां चन्दा
खेल रचाउँगा गल फन्दा ॥ ३
झूम झनन झून झनियाँ
बजती पैरो में पैजनियाँ
दे देगेंद चंदनी डंडा
बना कलम यह ले सरकंडा ॥ ४
जिस समय वर्धमान बालक पनहारिन का खेल खेल रहा था, बालक ने दुलहनियाँ की मथनियाँ पर पत्थर मारा तो गिर पडी । इसी का अलौकिक चित्रण कवि काव्य में किया है।
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मारा ढेला गिरी मथनियाँ । लड़ने को आ गई दुलहनियाँ ॥ बरजो रानी बालक अपना
अभी उम्र का छौना छोटा,
दिखा रहा रसरंजित सपना ॥
इस प्रकार कवि ने काव्य में विविध प्रकार की क्रीडा द्वारा बालक की बालसुलभ चेष्टा का सुंदर चित्रण किया है। यह बाल लीला वर्णन हमे सूर के बालवर्णन की स्मृति कराता है । कविवर सूरसागर का प्रभाव स्पष्ट लगता है। 'ज्ञान- सौपान ' सर्ग में कविने बालक को ज्ञानार्जन के लिए कलाचार्य के पास भेजने, बड़े भाई नन्दी वर्धन द्वारा छोटे
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(
१. 'भगवान महावीर” : कवि शर्माजी, “शैशवलीला " सर्ग - ४, पृ. ४८
२.
३.
४.
वही
वही, पृ. ४९
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