________________
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
भीतर भरी सुगन्ध उसी के - वन में खोजे मृग नादान ।
**
*
नव-समाज का प्रभुने गठन किया था ऐसे, शिल्पकार प्रतिमा को करता निर्मित जैसे।
*** पर अब सेठ धनाऊ, निश्चय कर बैठे थे, बिन बोले ही चले, मोह माया को तजकर। जैसे कोई वीर सिपाही, युद्ध भूमि में, चल पड़ता है, शत्रु-विजय करने को सजकर । ३
***
तन ऊंचा नीचा हृदय, जैसे ऊंचा ताड़, सब बाढ़ों से विकट है, पापी मन की, बाढ़॥
*** पड़े पिंजरे में दुःखी, तन की कैद कठोर। कैद छोड़ जागे नहीं, आ आ लौटे भोर ॥५
***
ar sin xi
"श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-७, पृ.२९६ वही, सोपान-८, पृ.३२७ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “प्यास और अंधेरा' सर्ग-७, पृ.१७१ वही वही, “वनपथ' सर्ग-१०, पृ.२५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org