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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
बुरा किसी का मत करो, बुरा न बोलो बोल |
बुरा सुनो देखो न तुम,
२.
३.
४.
यही ज्ञान का मोल ॥ १
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निस्संदेह रूप में मैं कह सकती हूँ की कवियों ने प्रबंध काव्यों में मुहावरें, कहावतें, सूक्तियाँ और दोहें को विषयानुकूल रचकर काव्य की भाषा को रोचक एवं सर्वग्राही बनाई है।
५.
कल्पवृक्ष
सत्संग |
संगति रखना साधु की, अभिमत फल दातार है, सत्संगति के रंग ॥
२
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(ई) प्रस्तुत महाकाव्यों में कहीं-कहीं पर क्लिष्ट और अप्रयुक्त शब्द भी आये है, फिर भी कथाप्रवाह अक्षुण्ण रहा है -
न स्त्रशं होते रिपु-शस्त्री ही वरन दुखी नरों के दुख देन्य भागते ।
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जिन्हे सदा उत्कट लालसा रही विलोक लें विग्रह कल्प वृक्षका ।
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नरेन्द्र भू पै मलयादि-तुल्य थे,
महार्ट शाखा-सम हस्त में लसी । ५
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“वीरायण" : कवि मित्रजी, "ज्ञानवाणी”, सर्ग - १२, पृ. ३०६ वही, "बालोत्पल", सर्ग - ५, पृ. ११६
" वर्द्धमान " : कवि अनूपशर्मा, सर्ग-१, पद. सं. ३४, पृ.४३
वही, पद. सं. ३५, पृ.४३
वही, पद.सं.४५, पृ.४६
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