________________
२२८
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन यह धरती उनसे टिकी, जिनका हृदय पवित्र॥१
गुण ही मानव को मानव से, उन्नत्त श्रेष्ठ बनाते हैं। अपनेपन को विकसित करके, मनुज देव बन जाते हैं।
***
रक्षण जब भक्षक बन जाते, पतन हँसा करता है। जिसका जन्म-मृत्यु उसकी, पर सत्य नहीं मरता है।
***
नीतिपूरक दोहे:
उपदेशात्मक नीतिपरक दोहें ऐसे है जो व्यक्ति की उन्नति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं। ये अधिकांशतः इन प्रबन्धोंमें प्रचुर मात्रामें देखने को मिलते हैं।
साँपन यदि काटे कभी,
बच सकता है प्राण। नारि यदि नागिन बने,
कहीं नहीं है त्राण॥
*** हाँय हाँय संसार है, काँय काँय संसार। यहाँ स्वार्थ के मित्र सब, यहाँ कहाँ है प्यार ?५
**
*
or on x i
"वीरायण" : कवि मित्रजी, "ज्ञानवाणी', सर्ग-१२, पृ.३१० “जयमहावीर" : कवि माणकचन्द, पंचमसर्ग, पु.५० “वीरायण" : कवि मित्रजी, “प्यास और अंधेरा", सर्ग-७, पृ.१७९ वही, “विरक्ति", सर्ग-९, पृ.२१४ वही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org