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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन १७१ जैसे आकाश से बिजली गिर पड़ी हो। इस प्रकार की अत्यंत दारूण स्थिति का वर्णन कविने काव्य में वर्णित किया है। जिस के पठन मात्र से पाठक का हृदय भी रोने लगा है। काव्य का वर्णन इतना सटीक है कि पूरे वातावरण का दृश्य आँखो के सामने घूमने लगता है - गौतम के युगल नयन से झर रही अश्रु धारायें। * ** रो उठे फ फ क कर गौतम सुन प्रभु की अंतिमवाणी। *** सूरज ने छिपा लिया मुख बादल को औट बनाकर रो उठे दिशा वन उपवन रो उठा विकल हो अम्बर। प्रभु की अन्तिमवाणी सुनकर गणधर गौतम फूट फूट कर रोने लगे। कार्तिक कृष्ण की अमावस की रात आ गई। प्रभु की दिव्य वाणी स्थंभित हो गयी। हँस उड़कर चल पड़ा और रह गया मृत शरीर । केवल धरती पर माटी ही रह गई। भगवान के परिनिर्वाण के पश्चात् गणधर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। पूजन के थाल सजकर सभी मंदिर में आ रहे थे। शंख ध्वनियाँ बजती थीं। मंदिर में जय महावीर की जय ध्वनियाँ ध्वनित हो रही थी। पावापुरी धरती का कण-कण पावन बन गया। निर्वाण भूमि तीर्थ बन गई । वृक्षों के समूह, पत्तियाँ, हिल-मिल कर मानों प्रभु की समाधि की ओर संकेत कर रहे थे। भू-अम्बर से जय महावीर, जय तीर्थंकर की आवाज गूंजती है। इस प्रकार कवियों ने काव्य के अन्तर्गत अपनी लेखनी द्वारा जन्म से लेकर प्रभु के निर्वाण तक का प्रकृति के अनुकूल उत्तम वर्णन चित्रित किया है। प्रभु का जन्म होना, इन्द्र द्वारा जन्म कल्याणक का आयोजन करना, देव-देवियाँ, इन्द्र आदि का १. २. "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-८, पृ.३५० वही, पृ.३४९ वही, पृ.३५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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