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• हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
लगी। चारो ओर एक आनंद की लहर छा गयी। समस्त प्राणी अपनी-अपनी भाषा में गुणगान गाने लगे। इस प्रकार सभी ओर संगीत की मधुर ध्वनि गूंजायमान
भगवान के होने लगी ।
हम प्रकृति से ऐसे सजीव चित्रण से ही उसके साथ तादात्म्य का अनुभव कर सकने में समर्थ हो सकते हैं । कवि ने भगवान महावीर के पावापुरी में आगमन के समय का प्रभावोत्पदक चित्रण किया है। उससे एक सजीवता ही खड़ी कर दी है। एक दृश्य ही खड़ा हो गया है।
भँवरों में गीत अलापा । पिंक ने मधुतान लगाई
सिर हिल - हिलाकर तरुदल ने चरणों में डाल झुकाई ।
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३.
आगे आगे चलता था
मलयज बुहाराता पथ में
प्रभु महावीर थे पीछे आसीन ज्ञान के रथ में - २
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पृ. ३३८
ऐसा लगता धरती पर
उमड़ा अपार धरती पर
चलनेवाले को कैसा विश्राम कहीं भी क्षणभर
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जिस समय प्रभुका निर्वाण होता है, उस समय जड़-चेतन प्रकृति शोक में डूब जाती है। प्रभु के वियोग से सभी ओर विलाप का वातावरण छा जाता है। गौतम गणधर वीर प्रभु के निर्वाण का समाचार मिलते ही जैसे आसमान ही टूट पड़ा है। लगता है
"तीर्थंकर महावीर”, कवि गुप्तजी, सर्ग-८, पृ. ३४१
वही,
वही
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