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________________ १४३ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन काव्य में महावीरकालीन धार्मिक परिस्थितियों का सजीव वर्णन किया है - पशुओं की बलि दी जाती है, यज्ञों से ज्वाला उठती है। हिंसा खुलकर खेला करती, अलकों की लाली लुटती है। ** * मनुष्य माँस खा रहा, मनुष्य काट काट कर । मनुष्य हाय हँस रहा, हराम चाट चाट कर । न शर्म है न धर्म है न देश हैं न वेश है। हाय हाय काँय काँय आदमी में शेष है ॥२ *** एक ओर यज्ञीय कर्मकाण्ड और दूसरी ओर कतिपय विचारक अपने सिद्धांतो की स्थापना द्वारा जनता को संदेश दे रहे थे। चारों और हिंसा, असत्य, शोषण, अनाचार, एवं नारी के प्रति किये जानेवाले और जुल्म अपना नग्न ताण्डव कर रहे थे। धर्म के नाम पर मानव अपनी विकृतियों का दास बना हुआ था। वैयक्तिक स्वातंत्र्य समाप्त हो चुका था और मानव के अधिकार तनाशाहों द्वारा समाप्त किये जा रहे थे। मानवता कराह रही थी और उसकी गरिमा खण्डित हो चुकी थी। धर्म राजनीतिक का एक भेत्थरा हथियार मात्र रह गया था। भय और आतंक के कारण जनता धार्मिक क्रियाकांड का पालन करती थी, पर श्रद्धा और आस्था उसके हृदय में अवशिष्ट नहीं थी। स्वार्थ नहीं था। स्वार्थ लोलुप धर्मगुरु और धर्माचार्य धर्म के ठेकेदार बन बेठे थे। मानव की अन्तश्चेतना मूर्छित हो रही थी और दासता की वृत्ति दिनोंदिन बढती जाती थी। दिगभ्रान्त मानव का मन भटक रहा था और कहीं भी उसे ज्ञान का आलोक प्राप्त नहीं हो रहा था। नारी की सामाजिक स्थिति भयावह थी। उसका अपहरण किया जा रहा था । कोइ उसे बेडियों में जकड़ता और कोई उसे तलघरों में बन्द करता था। फलतः नारी का नारित्व ही नहीं अपितु समस्त मानव समाज अन्धकार में भटक रहा था और सभी की दृष्टि उद्धार के हेतु किसी महान शक्ति की प्रतीक्षा में लगी हुई थी। निरीह पशुओं का निर्मम वध किया जा रहा था । पशुमेघ ही नहीं नरमेघ भी किये जा रहे थे । भीषण रक्तपात होने लगा था । अग्निकुण्डों से चीत्कार की ध्वनि कर्णगोचर हो रही थी। बर्बरता और दानवता का नग्न नाच हो रहा था। मनुष्य मनुष्य के १. “वीरायण' : कवि मित्रजी, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.५५ वही पृ.६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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