________________
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन थी। धार्मिक जड़ता और अन्ध श्रद्धा ने सबको पुरूषार्थ रहित बना दिया था, आर्थिक विषमता अपने पूरे उभार पर थी। जाति भेद और सामाजिक वैषम्य समाज में आसूर बन चूके थे। गतानुगतिकता का छोर पकड़ कर ही सभी चले जा रहे थे। इस विषम और चेतना रहित परिवेश में महावीर का दायित्व महान् था राजघराने में जन्म लेकर भी उन्होने अपने दायित्य को समझा। दूसरों के प्रति सहानुभूति के भाव उनमें जगे और एक क्रांतिदर्शी व्यक्तित्व के रुप में वे सामने आये, जिसने सबको जागृत कर दिया, अपनेअपने कर्तव्यों का भान करा दिया और व्यक्ति तथा समाज को भूल भूलैया से बाहर निकाल कर सही दिशा-निर्देश ही नहीं किया वरन् उनका मार्ग भी प्रशस्त कर दिया।
वास्तव में सामाजिक क्षेत्र में भगवान महावीर की देन को सर्वथा क्रान्तिकारी देन कहा जायेगा। समत्व की चर्चा मनुष्य समाज में प्रथम बार उनके द्वारा पुनर्जीवित हुई, व्यवहार में समता का जीवन मनुष्यों को प्रथम बार उनके द्वारा प्राप्त हुआ। शुद्र और नारी समाज के लिए उन्होंने उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर दिया। चिरपतितों और उपेक्षितों के जीवन में प्रथम बार जागृति आई। युगान्तर स्पष्ट दर्शित होने लगा। शूद्रों की छाया से अपवित्र होने की आशंका पवित्र विप्रों के लिए नहीं रह गई।' नारी को केवल भोग्य या दासी बनाकर नारकीय जीवन बिताने की आज्ञा देनेवालों को अपनी क्रूरता का पश्चाताप् होने लगा । भगवान महावीर के जन्म से पूर्व का इतिहास आज अलभ्य नहीं रह गया है।हम उसके पुरातन पृष्टों में समाज का जो हृदयद्रावक रुप पाते हैं, उसके स्मरण मात्र से रोमांच हो आता है। बाजार में खुले आम मातृ-जाति का क्रय-विक्रय होता था, उन्हें पशुओं की तरह खरीदने के लिए सड़कों पर बोलियाँ लगाई जाती थी। इतना ही क्यों, यदि इन दास-दासियों की मृत्यु स्वामी की प्रताडनाओं से हो जाती थी, तो उसकी सुनवाई के लिए कहीं स्थान नहीं था। कैसी विडम्बना थी कि उन दासों के हाथों भिक्षा ग्रहण करने में भिक्षुक भी अपना अपमान मानते थे। भगवान महावीर ने प्रथम बार इस जघन्य वृत्ति के लिए समाज को चेतावनी दी। सृजनात्मक विप्लवी घोषणा की। इतिहास के पृष्ठों में चंदनबाला की कष्ट कथा तत्कालिन मनुष्य समाज की दानवी-प्रवृत्ति एवं सामाजिक विकृति दोनों को ही उजागर करनेवाली कथा है।
महावीर की क्रान्तिधर्मिता का पहला आयाम है सामाजिक क्षेत्र । तत्कालीन
उत्तराध्ययन सूत्र, १२ वाँ अध्ययन महावीर चरियं गुणचन्द्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org