________________
१२४
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन में अरब सागर तक चली गई हैं, और भारत को सिन्धु घाटी को अफघानिस्तान व बलोचिस्तान से पृथक करती हैं। उत्तर पश्मिच की ओर भारत की असली वैज्ञानिक सीमा हिन्दू कुश पर्वत है, जो हिमालय की पर्वत श्रृंखला का ही एक अंग है । हिन्दुकुश पर्वत के दोनों ओर का प्रदेश जो अब अफघानिस्तान के अन्तर्गत है, प्राचीनकाल में वह भारत का ही अंग था। उत्तर-पूर्व में हिमालय की एक श्रृंखला दक्षिण की ओर झुकती है, और लुशेई, नागा व पतकोई पहाडियों के रुप में बंगाल की खाड़ी तक चली जाती है। प्रकृति ने भारत को एक विशाल दुर्ग के समान बनाया है जो पर्वत श्रृंखलाओं और समुद्र से घिरा हुआ है, जैसी सुंदर और स्वाभाविक सीमा भारत की है, वैसी विश्व शायद ही किसी अन्य देश की हो ।
जैन मान्यता भी ऐसी ही एकता को प्रस्तुत करती है कि भारत जम्बुद्वीप के दक्षिणी भागमें स्थित है। इस के उत्तर में हिमवान पर्वत है और मध्य में विजयाद्ध पर्वत । पश्चिम में हिमवान से निकली हुई सिन्धु नदी बहती है और पूर्व में गंगा नदी, जिससे उत्तर भारत के तीन विभाग हो जाते हैं, दक्षिण भारत के भी पूर्व, मध्य और पश्चिम दिशाओं में तीन विभाग हैं। ये ही भारत के छ खंड हैं, जिन्हें विजय करते कोई सम्राट चक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त करता था ।
अतीत भारत का चित्रण :
भारत की वर्तमान परिस्थियों एवं समस्याओं पर जब हम विचार करते हैं, तो अतीत और भविष्य के चित्र बरबस मेरी कल्पना की आँखो के समक्ष उभर कर आ जाते हैं । इन चित्रों को वर्तमान के साथ सम्बद्ध किये बिना वर्तमान दर्शन नितान्त अधूरा रहेगा, भूत और भावी के फ्रेम में मढ़कर ही वर्तमान के चित्रको सम्पूर्ण देखा जा सकता है। कविने काव्य में अतीत का चित्रण खींचते हुए लिखा है
उन बलिदानों की पूजा हैं, जिनसे यह भारत देश टिका
उन वीरों को शत शत प्रणाम आँसु पर जिनका शीश बिका। "
***
प्राचीन भारत के अध्ययन से वह गरिमा मंडित स्वर्णिम चित्र हमारे समक्ष उपस्थित हो जाता है। जिनकी स्वर्ण रेखाएँ पुराणों और स्मृतियों के पटल पर अंकित हैं। रामायण और महाभारत की तूलिका से संजोई हुई हैं। जैन आगमों और अन्य साहित्य
" वीरायण", कवि मित्रजी, सर्ग - १, "पुष्प प्रदीप" पृ. २६
१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org