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________________ ॥ प्रथमो विमर्शः॥ एटले मरी जाय , तेम क्रूर ग्रहवझे नाना पादनो वेध अवाथी पण वळ, सत्त्व श्रने संपत्तिनो नाश थाय ते." __ श्रीपति कहे जे के"शदं सौम्यग्रहैर्वि पादमानं परित्यजेत् । क्रूरैस्तु सकलं त्याज्यमिति वेधविनिश्चयः ॥१॥" "जो नक्षत्रनो सौम्य ग्रहवमे वेध थयो होय तो मात्र ते पादनो ज त्याग करवो, अने क्रूर ग्रहवमे वेध अयो होय तो ते आलुं नत्र तजवं. ए प्रमाणे वेधनो निश्चय ( व्यवस्था) जे." सात शलाकाना वेधनो यंत्र. क्र रो मृ आ पु पु अ सप्त रेखा वेधचक्र श्र अ उ पू मू ज्ये अ हवे विवाहमां विचारवा योग्य बीजो वेध योग पांच शलाका चक्रवमे बतावे . विवाहे पूर्ववत्पश्च रेखा के के तु कोणके ।। लिखित्वाऽग्निजतो नानि वेधं तत्रापि चिन्तयेत् ॥ ए॥ अर्थ-विवाहने विषे पूर्वनी जेम एटले उनी तथा श्रामी पांच पांच रेखा तथा चारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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