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________________ ३ए ॥ आरंसिद्धि ॥ विचार नहीं, वेधनो विचार करवो नहीं, अशुन दिवसनो विचार करवो नहीं, क्रूर ग्रह साथे रहेला अने रहेशे एवा नक्षत्रनो विचार करवो नहीं, होरानो विचार करवो नहीं, नवांशकनो विचार करवो नहीं, तथा मूर्ति (१०) आदिक स्थानोमा रहेला ग्रहोनो पण विचार करवो नहीं. मात्र बना अने आठमा चंजनो त्याग करवाश्रीज गोधूलिक लग्न प्रशस्य-शुक्ल ." आ श्लोकमां जो के बहा श्रापमा चंजनो त्यागज अपेक्षित ने, बीजुं कां पण अपेक्षित नथी एम कडं , तोपण आ प्रमाणे जाणवू.-गोधूलिक लग्न लीधुं होय तोपण विवाहनुज नक्षत्र अने तेनी शुद्धि होवी जोइए, तथा वर्ष, मास, पद अने दिवसनी शुद्धि पण अवश्य होवी जोश्ए. अहीं कोई शंका करे के-जो बीजा दोषोए नहीं जीती शकाय एवं होवाथी गोधूलिक लग्न प्रधान ने तो पूर्वे कहेला लग्नादिकनां फळोनुं अप्रधानपणुं थशे ? उत्तर-खरी वात ने, केमके उलंघन न करी शकाय एवा कुळ अने देशना धर्मने श्रनुसरवाथी कोई वार ते लग्नादिक फळोने अप्रधानपणानी प्राप्ति आवे तोपण ते अनिष्ट नथी-इष्टज बे. कडं बे के "न शास्त्रदृष्ट्या विषां कदाचिउलंघनीयाः कुलदेशधर्माः। देशे गतोऽप्येकविलोचनानां, निमीट्य नेत्रं निवसेन्मनीषी ॥ १॥" "विधानोए को वखत पण शास्त्रनी दृष्टिने सीधे कुळ, देश अने धर्मर्नु उलंघन करवू नहीं, केमके माह्यो माणस एक नेत्रवाळाना देशमा गयो होय तो तेणे त्यां पोतानुं एक नेत्र बंध करीनेज वसवू जोइए." श्रा रीते अमुक कुळ अने देशमां गोधूलिकनुंज प्रधानपणुं चे, परंतु लग्नादिकना फळर्नु प्रधानपणुं नथी, तेथी कां पण दोष आवतो नथी. वळी अमुक कुळ अने देशना धर्म मात्र गोधूलिकनाज विषयवाळा जे एम नथी, परंतु ग्रहगोचरादिक विषयवाळा पण जे. जेमके-विवाहमा नागरलोको बम आठमा विगेरेने गणता (अपेक्षा राखता) नथी, नार्गवना वंशजोमां नाप्रपद शुक्ल दशमने दिवसेज विवाह करवानी रीत बे, आ कुळधर्म . देशधर्मो या प्रमाणे जे. जेमके-गौम देशना लोको गोचरवमे श्रेष्ठ एवा सूर्यनी अपेक्षा राखे ने अने गुरुनी अष्टक वर्गे करीने अपेक्षा करे बे. दक्षिणना लोको गुरुने गोचरवमे करीने श्रेष्ठ श्छे ने अने सूर्यने अष्टक वर्गे करीने श्रेष्ठ श्छे . लाट देशना लोको सूर्यने तथा गुरुने अष्टक वर्गे करीने तथा गोचरवमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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