SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ३ए एवं सूचवन थाय बे के गोधूलिक लग्नमां गुरु अने शनिवार तजवाना , कारण के ते दिवसे अनुक्रमे अर्धयाम अने कुलिकनी उत्पत्ति के. (गुरुवारे अर्धयाम अने शनिवारे कुलिक थाय .) केशवार्क तो आ प्रमाणे कहे जे. ___ "सार्क शनौ चिरविचित्रशिखएिमसूनौ, तत्केवलं कुलिकयामदलोपलम्नात् ।" __ "शनिवारे सूर्य उतां गोधूलिक लग्न करवं, केमके सूर्यास्त पजी कुलिक योग थाय ने, तथा गुरुवारे सूर्यास्त पठी करवू, कारण के ते पहेला अर्धयाम योग थाय बे." मूळमां खग शब्द लख्यो ने तेनो अर्थ ग्रहो श्राय जे. तेमनी अनुकूळता विना पण एम मूळमां लख्युं ने तोपण क्रांतिसाम्य विगेरे मोटा दोषो अवश्य त्याग करवा योग्य वे. तेने माटे व्यवहारप्रकाशमां कडं बे के "क्रूरैर्युतनत्रं व्यतिपातं वैधृतिं च संक्रान्तिम् । हीणं चन्ध्र ग्रहणनशनिगुरुदिनक्रान्तिसाम्यानि ॥१॥ दम्पत्योरष्टमन्नं लग्नात् षष्ठाष्टमं च शीतांशुम् । रविजीवयोरशुद्धिं विवर्ण्य गोधूलिकं शुन्नदम् ॥२॥ गोधूलिकापरिणयने येषां केन्प्रोपगः शुनो न मृतौ । जौमो नोदयनिधने तेषां सौख्यानि नान्येषाम् ॥३॥" "क्रूर ग्रहवमे युक्त नत्र, व्यतिपात, वैधृति, संक्रांति, क्षीण चंड, ग्रहण नक्षत्र, शनिवार, गुरुवार, क्रांतिसाम्य, लग्नथी स्त्री पुरुषने आठमुं नक्षत्र, बो के आठमो चंज तथा रवि अने गुरुनी अशुद्धि, आटलांने वर्जीने गोधूलिक लग्न शुलदायक . गोधूलिकना विवाहमा जेने केन्द्रमा शुल ग्रह होय अने मृत्यु (1) स्थानमा शुन ग्रह न रह्यो होय, तथा उदय (१) अने निधन (1) स्थानमा मंगळ रहेलो न होय तेमने सुख के, बीजाने नथी." मूळ श्लोकमां "प्राग्रहरं" एटले बीजा दोषोए श्रा(गोधूलिक) जीती शकाय तेवू नथी, माटे प्रधान-श्रेष्ठ बे. ते विषे सारंग कहे जे के "जामित्रं न विचिन्तयेद्युत लग्नाबशाङ्कात्तथा, नो वेधं न कुवासरं न च गतं नागामि नं पाप्मतिः। नो होरां न नवांशकं न च खगान्मूर्त्यादिनावस्थितान् , हित्वा चन्द्रमसं षष्टमगतं गोधूलिकं शस्यते ॥ १॥" । __"जामित्र (७) स्थाननो विचार करवो नहीं, लग्नथी तथा चंथी ग्रहवझे युक्तपणुं १ जामित्र स्थान शुद्ध के अशुद्ध छे ? तेनो विचार करवो नहीं. ए रीते सर्वत्र जाणवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy