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________________ ३५६ ॥ आरंसिद्धि॥ बनी घमी ४२ वझे नाग देवाथी कळा ७१ तथा विकळा ३३ श्रावी. या रीते श्रावेलुं कळादिक फळ पूर्वे आणेला ग्रहोमां नेळवq. या रीते बीजा ग्रहोनी वर्तना पण - उपर कह्या प्रमाणे पोतानी बुद्धिथी करवी. आ सर्व गणित ज्योतिर्विदोने निरंतर उपयोगी होवाथी तथा प्रसंग होवाथी देखाड्युं बे. __ हवे विवाहमां गोधूलिक लग्न कहे .सन्ध्यालग्नमपि श्रेयो गोखुरोत्खातधूलिनिः। गोपानां हीनवर्णानां प्राच्यां च स्यात्करग्रहे ॥७३॥ अर्थ-गोवाळना, नीच वर्णना अने पूर्व देशमा रहेनारना विवाहमां गायनी खरीए उमामेली धूळवमे जणातुं संध्या लग्न पण श्रेय (शुन्न) जे. सूर्यना अस्त वखते सूर्य- अर्ध बिंब देखातुं होय त्यारथी आरतीने गायनी खरीथी उमेली धूळ ज्यांसुधी शांत न थइ होय त्यांसुधी गोधूलिक लग्ननो समय होय , तेथी करीनेज अहीं श्लोकमां"धूलिनिः"एम कथु बे. अर्थात् ज्यांसुधी तारा न देखाय त्यांसुधी जाणवू. जो सूर्य वादळांथी ढंकायेल होय तो प्रपन्नाट नामनी उपधिना पत्रनुं मळी जवू, पक्षीउना समूहनो कोलाहल श्रवो तथा तेमनुं पोतपोताना माळा तरफ जवा माटे उत्सुकपणुं ए विगेरे चिह्नोवमे लग्नसमयनो निर्णय करवो. मूळ श्लोकमां "श्रेयो"-शुल एम कडं ते लोकरूढिथी कह्यु बे. तथा "हीनवर्णानां" एटले नीच वर्ण ए शब्द सामान्य रीते कह्यो बे, कारण के गदाधर कहे जे के _ “घटिकालग्नाजावेऽङ्गीकार्य गोरजोऽपि विप्रैश्च ।" "घटिका लग्नने अन्नावे ब्राह्मणोए गोरज (गोधूलिक ) लग्न पण अंगीकार करवू.' हवे गोधूलिक लग्नमा केटली शुद्धि होवी जोइए ते कहे जे. शीतद्युतिं षष्ठमथाष्टमं च, नार्धयामौ कुलिकं च हित्वा । विनाऽपि लग्नांशखगानुकूल्यं, गोधूलिकं प्राग्रहरं वदन्ति ॥ ४ ॥ अर्थ-उने तथा आठमो चंड, जत्रा, अर्धयाम अने कुलिकने गेमीने लग्ननो नवांशक अने नत्रनी अनुकूळता न होय तोपण गोधूलिक लग्नने श्रेष्ठ कहे जे. लग्नथी बछे के आवमे चंज होय तो ते कन्याना मृत्युने देनार ने तथा "मंगळ पण पहेला के आउमा स्थानमा रह्यो होय तो ते पतिना मृत्युने करनार होवाथी तजवा योग्यज " एम सारंग कहे . अर्धयाम तथा कुलिकने तजवाना लख्या , तेथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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