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________________ ३५० ॥श्रारंजसिद्धि॥ ___"बध लग्नमां रह्यो होय, अथवा गुरु चतुष्टय (१-४-७-१०) स्थानमा रह्यो होय अने शुक्र हिबुक (1) स्थानमा रह्यो होय त्यारे इन्छ, कार्तिकस्वामी, यक्ष, चंच अने सूर्यनी प्रतिष्ठा करवी." “यस्य ग्रहस्य यो वर्गस्तेन युक्ते निशाकरे। __प्रतिष्ठा तस्य कर्तव्या स्वस्ववर्गोदयेऽपि वा ॥ ६॥" __जे ग्रहनो जे वर्ग होय ते वर्ग करीने युक्त चंड होय त्यारे ते ग्रहनी प्रतिष्ठा करवी, अथवा पोतपोताना वर्गनो उदय होय त्यारे करवी.” । "अस्मात्कालाअष्टास्ते कारकसूत्रधारकर्तृणाम् । दयमरणबन्धनामय विवादशोकादिकर्तारः॥ ७॥" "श्रा उपर कहेला समयथी रहित काळे प्रतिष्ठा करी होय तो ते तेदेवो करावनार, सुथार अने करनारना क्य, मरण, बंधन, व्याधि, विवाद अने शोक विगेरेने करनारा थाय ने." विशेष ए ने जे-रेखा आपनारा दरेक ग्रहोए करीने सर्व कार्योमां वीश विशोपकवाळु बग्न थाय बे. ते या प्रमाणे. "अछुत विसा रविणो पण ससिणो तिन्नि दुति तह गुरुणो। दो दो बुहसुकाणं सहा सणिनोमराहूणं ॥१॥" "सूर्यना सामा त्रण वसा, चंधना पांच वसा, गुरुना त्रण, बुधना तथा शुक्रना बबे श्रने शनि, मंगळ तथा राहुना दोढ दोढ वसा होय जे." आ सर्व मळीने वीश वसा एटखे विशोपक थाय बे." हवे प्रतिष्ठाना लग्नमां विशेष कहे . बलहीनाः प्रतिष्ठायां रवीन्डुगुरुजार्गवाः । गृहेश १ गृहिणी सौख्य ३ खानि हन्युर्यथाक्रमम् ॥५॥ श्रर्थ-जो प्रतिष्ठामां सूर्य, चंद्र, गुरु श्रने शुक्र वळहीन होय तो ते अनुक्रमे घरना स्वामीने, तेनी स्त्रीने, सुखने तथा धनने हणे , एटले के सूर्य बळहीन होय तो घरना स्वामीनो नाश थाय बे, चं बळहीन होय तो तेनी स्त्रीनो नाश थाय ने विगेरे. अहीं बळहीन एटले पहेलां अढार प्रकारे अथवा नव प्रकारे ग्रहोनी निर्बळता कही ते जाणवी. अथवा तो नीच, क्रूर ग्रहे युक्त के अस्त पामेलो जे ग्रह होय ते निर्बळज कह्यो. तथातनु १ बन्धु सुत ५ यून धर्मेषुए तिमिरान्तकः । सकर्मसु १० कुजार्की च संहरन्ति सुरालयम् ॥ ५३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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