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॥ पञ्चमो विमर्शः ॥
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अर्थ - पहेला चोथा, पांचमा, सातमा के नवमा स्थानमां जो सूर्य रह्यो होय ने उपरना (पांच) स्थानोमां के दशमा स्थानमां मंगळ के शनि रह्यो होय तो ते देवालयनो नाश करे बे.
सर्व कार्यांशु ग्रहोनी शक्ति तथा तेना फळने कहे बे.. सौम्यवाक्पतिशुक्राणां य एकोऽपि बलोत्कटः । क्रूरैरयुक्तः केन्द्रस्थः सद्योऽरिष्टं पिनष्टि सः ॥ ५४ ॥
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अर्थ – बुध, गुरु ने शुक्रमांनो कोइ पण एक बलोत्कट ( बलिष्ठ ) होय तेमज क्रूर तेनी साथ रहेलो न होय अने ते पोते केंद्रस्थानमा रह्यो होय तो ते तत्काळना रिष्ट योगनो नाश करे बे.
ग्रह
श्रीं बलोत्कट को बे, तेथी ग्रहोने विषे वीश प्रकारे बळ कहेलुं बे. ते या प्रमाणे. -
"स्व १ मित्र २ र्दो ३ च ४ मार्गस्थ ए स्व ६ मित्रवर्गगो ७ दितः ।
जयी चोत्तरचारी च १० सुहृ ११ त्सौम्यावलोकितः १२ ॥ १ ॥ त्रिकोणा १३ यगतो लग्नात् १४ हर्षी १७ वर्गोत्तमांशगः १० । शिलं १० शरिफं २० यदि सौम्यैर्ग्रहैः सह ॥ २ ॥ सर्वयोगे वेदेवं बलानां विंशतिग्रहे ।
यावद्वलयुताः खेटास्तावद्विशोपकाः फलम् ॥ ३ ॥”
" ग्रह पोताना स्थानमा रहेलो होय १, मित्रना स्थानमा रहेलो होय २, पोताना नक्षत्रमां रहेलो होय ३, उच्च स्थाने रहेलो होय ४, मार्गमा रहेलो ( मार्गी) होय ए, पोताना वर्गमा रहेलो होय ६, मित्रना वर्गमा रहेलो होय 9, उदय पामेलो होय, जयवाळो होय ए, उत्तरचा होय १०, मित्रे जोयेलो होय ११, सौम्य ग्रहे जोयेलो होय १२, त्रिकोणमा रहेलो होय १३, लग्नथी गीयारमे स्थाने रहेलो होय १४, ऋण प्रकारनो हर्षी होय १७, वर्गोत्तमना नवांशकमां रहेलो होय १८, सौम्य ग्रहनी साथे मुथुशिल योग होय १९, सौम्य ग्रहनी साथे भूशरिफ योग होय २०, या सर्व योग थाय तो ग्रहने विषेवीश वसा बळ थाय. जेटला बळवाळा ग्रहो होय तेटला विशोपका (वसा) फळ जाणवुं.” उपर त्रण प्रकारनो हर्षी ग्रह कह्यो बे. तेमां ग्रहोनुं हर्षस्थान चार प्रकारे कहेलुं बेते या प्रमाणे. -
"गो एत्र्य ३ है ६ का १य ११ धी ए रिष्य १२ स्थानानि जास्करादिषु । हर्षस्थानमिदं पूर्व १ सर्वेषु स्वोच्चनं परम् ॥ १ ॥
१ 'मुथुशिल, २ मूशरिफ, आ बे योगनुं स्वरूप चतुर्थ प्रकाशना ४७ खोकना अर्थमां छे.
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