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॥पञ्चमो विमर्शः॥
३४ए "शनि पहेले स्थाने होय तो (प्रतिमानी ) पूजानो नाश थाय १, बीजे होय तो प्रतिष्ठा करनारनो नाश थाय २, त्रीजे होय तो घणो वैजव प्राप्त थाय ३, चोथे होय तो प्रासाद अने बंधुनो नाश थाय ४, पांचमे होय तो पुत्रनुं अकट्याण (मरण) थाय ५, बछे होय तो शत्रु अने रोगनो नाश थाय ६, सातमे होय तो ज्ञाति (सगा संबंधी) श्रने स्त्री, मरण थाय 9, बाग्मे होय तो गोत्रना (पित्राश्ना) प्राणनो नाश थाय , नवमे होय तो पाप कर्म बंधाय ए, दशमे होय तो कार्यनी हानि थाय १० अगीयारमे होय तो स्त्री, सुवर्ण, रत्न, जीवित अने धननी प्राप्ति थाय ११ तथा बारमे होय तो मांदगीनो उदय थाय १५.”
____ "सकलकुंमलिकासु विधुतुदः, शनिसमानफलो हि विचार्यताम् ।" “सर्व लग्नकुंमळीमा राहुने शनिनी जेवा फळवाळो जाणवो.”
वळी लस तो था प्रमाणे कहे जे.
"बलवति सूर्यस्य सुते बलहीनेऽङ्गारके बुधे चैव ।
___ मेषवृषस्थे सूर्ये पाकरेऽचर्चाहती स्थाप्या ॥१॥" "सूर्यनो पुत्र (शनि) बळवान् होय, मंगळ अने बुध बळहीन होय श्रने मेष तथा वृष राशिमां सूर्य तथा चंज रह्या होय त्यारे अरिहंतनी प्रतिमानी स्थापना करवी." अहीं “मेषवृषस्थे"ने बदले केटलाएक आचार्यों "मेषमृगस्थे” एटले "मेष अने मृग राशिमां" एम कहे बे.
"बलहीने त्रिदशगुरौ बलवति चौमे त्रिकोणसंस्थे वा।
असुरगुरौ चायस्थे महेश्वरार्चा प्रतिष्ठाप्या ॥२॥" “गुरु बळहीन होय, मंगळ बळवान् होय अथवा त्रिकोणमा रह्यो होय तथा शुक्र अगीयारमे स्थाने रह्यो होय त्यारे महेश्वर ( महादेव )नी प्रतिमा स्थापन करवी."
"बलहीने त्वसुरगुरौ बलवति चन्मात्मजे विलग्ने वा।।
त्रिदशगुरावायस्थे स्थाप्या ब्राह्मी तथा प्रतिमा ॥३॥" __ "शुक्र बळहीन होय, चंनो पुत्र (बुध) बळवान् होय अथवा लग्नमां रह्यो होय तथा गुरु अगीयारमे स्थाने रह्यो होय त्यारे ब्रह्मानी प्रतिमा स्थापन करवी."
“शुक्रोदये नवम्यां बलवति चन्ने कुजे गगनसंस्थे।
त्रिदशगुरौ बलयुक्ते देवीनां स्थापयेदर्चाम् ॥ ४॥" "नवमीने दिवसे शुक्रनो उदय होय, चंड बळवान् होय, मंगळ दशमे स्थाने रह्यो होय अने गुरु बळवान् होय त्यारे देवीनी प्रतिमा स्थापवी."
"बुधलग्ने जीवे वा चतुष्टयस्थे नृगौ हिबुकसंस्थे । वासवकुमारयन्छिनास्कराणां प्रतिष्ठा स्यात् ॥ ५॥"
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