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________________ ॥पञ्चमो विमर्शः॥ ३०ए “जे दिवसे क्रांतिसाम्य होय ते दिवसथी पहेलानो दिवस सुखनी हानि करे , तेनी पजीनो दिवस सदमीनी हानि करे , अने क्रांतिसाम्यनो दिवस आयुषनी हानि करे ने, माटे या त्रण दिवसो वर्जवा योग्य वे." केटलाक आचार्यों क्रांतिसाम्यवाळो एकज दिवस वर्जवानुं कहे , अने वीजा केटलाक तो ते दिवसे पण क्रांतिसाम्य अवानो समयज मात्र तजवानो कहे जे. ते कहे वे के "विषप्रदिग्धेन हतस्य पत्रिणा, मृगस्य मांसं सुखदं हताहते। यथा तथैव व्यतिपातयोगे, दाणोऽत्र वयो न तिथिर्न वारः॥१॥" __ "जेम विप लगावेला वाणथी हणायेला मृगर्नु छत ( इतना स्थान )विनानुं बीजं सर्व मांस सुखकारक ने तेम व्यतिपात (क्रांतिसाम्य ) योगने विषे पण ते योगनो समयज वर्जवा योग्य बे, परंतु आखी तिथि के आखो वार वर्जवा योग्य नथी." ___ क्रांतिसाम्यनी वेळानो निश्चित समय तया ते क्रांतिसाम्य केटलो वखत रहे ने तेनुं परिमाण करणकुतूहल विगेरे ग्रंथमां कहेला विधिने अनुसारे जाणवू एम प्रथम कही गया जीए. श्रा क्रांतिसाम्य मोटो दोष गणाय . ते विषे लह कहे जे के . “खगाहतोऽग्निना दग्धो नागदष्टोऽपि जीवति। क्रान्तिसाम्यकृतोपाहो म्रियते नात्र संशयः॥१॥" " खगयी हणायेलो, अग्निथी बळेलो अने सर्पथी मसायेलो पुरुष कदाच जीवी शके बे, परंतु क्रांतिसाम्यमां विवाहित थयेलो पुरुष मरीज जाय बे, तेमां कांपण संशय नथी." श्रा विवाहना विषयमा तजवा योग्य अढार दोषोना संग्रहनो श्लोक ा प्रमाणे . "स्युर्वेधः १ पात ५ लत्ते ३ ग्रहमलिनमुमु ४ क्रूरवारा ५ ग्रहाणां, जन्म ६ विष्टि ७ रर्धप्रहरक छ कुलिको ए पग्रह १० क्रान्त्य ११ वस्थाः १२ । कर्कोत्पातादि १३ घंटो १४ विगतबलशशी १५ पुष्टयोगार्गलाख्या १६, गएमान्तो १७ दग्धरिक्ताप्रमुखतिथि १० रश्रो नामतोऽष्टादशैते ॥ १॥" “वेध १, पात २, सत्ता ३, ग्रहवझे मलिन (दूषित ) श्रयेलुं नक्षत्र ४, क्रूर वार ५, ग्रहोर्नु जन्मनक्षत्र ६, विष्टि ७, अर्धप्रहर छ, कुलिक ए, उपग्रह १०, क्रांति ११, अवस्था १२, कर्क, उत्पात विगेरे १३, घंट १४, निर्बळ चंड १५, 5ष्ट योगो तथा अर्गल योग १६, गंगांत १७ तथा दग्ध अने रिक्ता विगेरे तिथि १७, श्रा नामना अढार दोषो जाणवा." अहीं ग्रहवमे मलिन श्रयेलुं नक्षत्र एटले क्रूरेण मुक्तमाक्रान्तं० (विमर्श ५. श्लोक १५) ए श्लोकमां कहेला दोषयी दूषित श्रयेवं अने वळी चंजना जोगववावमे हजु सुधी शुछ श्रयेलुं न होय एवं नक्षत्र. क्रूर वारे करीने क्रूर होरा पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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