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________________ ३०७ ॥ आरंसिद्धि ॥ पजी श्रावशे ? तेने माटे उपर कहेली रीते दिवस अने घमी विगेरे काढवा. ग्रहो भने ग्रहोनी गतिने स्पष्ट करवानो विधि (रीत) आगळ कहेवामां आवशे. आ क्रांतिसाम्यना संनवर्नु स्थान सूत्रकारे स्थूल प्रमाणथी कह्यु , तेथी श्रमे पण तेने अनुसरीने स्थूल प्रमाण-ज विविरण कर्यु बे, परंतु कोश्ने सूक्ष्म दृष्टिथी जोवु होय, जेमके क्रांतिसाम्यनो आरंन क्यारे थयो ? ते केटला वखत सुधी रहीने क्यारे ते पूर्ण अयुं ? क्रांतिसाम्य शब्दनुं सार्थक नाम शुं ? एटले के एनुं क्रांतिसाम्य एवं नाम केम कहेवायुं ? अने बारनी संख्यानी उत्पत्ति उतां पण क्रांतिसाम्य थतुं नथी ए क्यारे अने शी रीते? क्रांतिसाम्य बतां पण ते क्यारे अने शी रीते दोपकारी न होय ? इत्यादि सूक्ष्म प्रमाणने श्वनारे करणकुतूहल, नास्करसिद्धांत विगेरे ग्रंथो जोवा. अहीं कोई शंका करे ने के-तमे प्रथम एवं कर्वा के क्रांतिसाम्यनुं स्थान मासे मासे अने वर्षे वर्षे फरे चे, तो तेने फरवाना स्थाननी कां पण सीमा के के नहीं ? श्रा शंकानो जवाब आपतां कहे जे के-हा, . ते प्रमाणे. "गएमोत्तरार्धात्रुक्लादेः क्रान्तिसाम्यस्य संनवः । सार्धपञ्चसु योगेषु तत्त्यहं परिवर्जयेत् ॥ १॥" "गंमना उत्तरार्धथी अने शुक्ल योगनी आदियी आरंजीने सामा पांच योग सुधी क्रांन्तिसाम्यनो संन्नव बे. तेना त्रण दिवस वर्जवा योग्य वे. गंम योगना उत्तरार्धथी आरंजीने (एटले गंम योगना वे पाद गया पठी) सामा पांच योग सुधी (एटले वज्र योग पूर्ण थाय त्यांसुधी) तथा शुक्ल योगने पहेलेथीज आरंजीने सामा पांच योग सुधी (एटले प्रीति योगना बे पाद पूर्ण थाय त्यांसुधी) क्रांतिसाम्यनो संजव बे. श्रा सिवाय बीजा योगोमां तेनो संलवज नथी, एम खंमखाद्य नाष्य विगेरेमां कडं बे. अर्थात् आ वे स्थाने सामा पांच योगने विषेज क्रांतिसाम्य फर्या करे , ए सामा पांच योगने उलंघन करीने वीजा कोइ पण योगमां कोई पण वखत क्रांतिसाम्य गयुं (थयुं) नथी तेम जशे (श्रशे )पण नहीं. श्रा क्रांतिसाम्य दोषना त्रण दिवस वर्जवाना कह्या बे, एटखे के हालना समयमां ब्रह्म योगनो अन्त्य पाद अने ध्रुव योगनो श्राद्य पाद ए बे स्थानथी पाबळ चालतुं ( रहेढुं) क्रांतिसाम्य कदाचित् गयेले (पहेले )दिवसे जाय बे (थाय डे )अने आगळ चालतुं ( रहेढुं) क्रांतिसाम्य कदाचित् आगळने ( पनीने) दिवसे जाय , तेथी करीने क्रांतिसाम्यना संनवना स्थानवाळो एक दिवस अने आगळ पाबळनो एक एक दिवस एम त्रण दिवस तजवाना . अथवा बीजी रीते पण त्रण दिवस त्याग करवानुं था प्रमाणे कडं बे “गत १ मेष्य २६र्तमानं ३ सुख १ लदम्या २ युषां ३ क्रमात् । क्रान्तिसाम्यं सृजेशानिं व्यहं तेनात्र वय॑ताम् ॥१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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