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________________ श्२४ ॥श्रारंसिद्धि॥ __"पोताना स्थानमां, पोताना उच्च स्थानमां अने मूळ त्रिकोणमा रहेला जेटला ग्रहो कंटक (१-४-४-१०) स्थानमा रह्या होय ते सर्वे परस्पर कारक कहेवाय बे. तेमां पण दशमे स्थाने रहेला ग्रह विशेषे करीने कारक कहेवाय जे. जेमके कर्कना लग्नमां चंड रह्यो होय त्यारे पोताना उच्च स्थानमा रहेला मंगळ, शनि, सूर्य अने गुरु, ए चारे परस्पर कारक कहेला बे. तथा दशमा अने चोथा स्थाने रहेलो सर्व कोई ग्रह स्वगृह, उच्च केत्रिकोणनो न होय तोपण ते लग्ननो कारक थायले. पोताना स्थानमा, त्रिकोणमां के उच्चमा रहेलो ग्रह जो दशमा स्थानमां होय तो ते लग्नना ग्रहनो तद्गुणने पामेलो मित्र कहेवाय बे तथा तेने कारक पण कह्यो .” जन्मलग्नेशयोस्तानः कारको वापि लग्नगः । __ असौम्योऽपि शुजाय स्याध्यस्तः सौम्योऽपि चान्यथा ॥४४॥ अर्थ-जन्मेश अथवा लग्नेशनो तान अथवा कारक जो लग्नमां रह्यो होय तो ते असौम्य (क्रूर ) बतां पण शुनने माटे , अने ते सिवायनो सौम्य ग्रह पण अशुन जे. ___ यात्रा करवानी श्वावाळा राजादिकना जन्मसमये जे राशिमां चंड रह्यो होय ते राशिनो ईश जन्मेश कहेवाय . ते जन्मेश ग्रहनो अथवा जन्मना लग्नेश ग्रहनो जे ग्रह जन्मपत्रिमा तानरूप अथवा कारकरूप होय अने ते क्रूर होय तोपण यात्रानी बग्नपत्रिमा प्रथम स्थाने रहेलो शुल बे, अने तेथी विपरीत एटले जे सौम्य ग्रह पण जन्मपत्रिकामा जन्मेश के खग्नेशनो तान के कारक न होय ते ग्रह यात्रानी लग्नपत्रिकामां प्रथम स्थाने रहेलो शुन्न नथी. अर्थात् यात्रामां तान अने कारकनुं बळ अवश्य ग्रहण करवं जोश्ए. दैवज्ञवसनमां कडं वे के "नायकाः स्युः प्रसूतौ ये रक्षका ये च वर्धकाः। ते क्रूरा अपि यात्रायां लग्नस्थाः शुलदा ग्रहाः ॥१॥" "जन्मकाळे जे ग्रहो नायक होय, जे रक्षक होय अने जे वर्धक एटले वृधिकारक होय ते ग्रहो क्रूर होय तोपण यात्रामां लग्न (प्रथम ) स्थाने रहेला शुन जे.” आ नायक, रक्षक अने वर्धकनुं स्वरूप बृहत् जातकमांधी जाणी लेवू. , वक्री केन्ऽथ तो लग्ने यातुर्जयापहः। गतिप्रमाणवणैर्वा विकृतश्च ननश्वरः ॥ ४५ ॥ अर्थ-वक्री ग्रह केंजमा रह्यो होय अथवा ते वक्री ग्रहनो वर्ग लग्नमां रह्यो होय तो यात्रा करनारना जयनो नाश करे . तथा जे ग्रह गति, प्रमाण अने वर्षे करीने विकृत (विकारवाळो) होय ते पण यात्रालग्नमां प्रथम स्थाने रहेलो अशुल बे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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