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________________ ॥ चतुर्थो विमर्शः ॥ २११ अर्थ-मेपादिक राशि अनुक्रमे पूर्वादि चार दिशाउँना ईश , ते ज प्रमाणे सिंहादिक चार तथा धन्वादिक चार राशि पूर्वादिक दिशाउना ईश ने एम पूर्वे कडं वे. ते राशि ते ते दिशाना मुखवाळी जे एम ज्योतिर्विदो कहे , तेश्री दिग्मुख लग्नमां तथा शीर्षोदयी लग्नमां प्रयाण करवाथी कार्य सिद्धि थाय बे अने तेथी उलटुं एटले उत्तर के पूर्व मुखर्नु लग्न होय त्यारे अनुक्रमे दक्षिण के पश्चिममां गमन करवू अने दक्षिण के पश्चिम मुखवाळा लग्नमां अनुक्रमे उत्तर के पूर्वमां गमन करवू तथा पृष्ठोदय लग्नमां गमन करवू ए सिधिने माटे नथी. विशेष ए जे के यात्रामां लग्न प्राये चर ज ग्रहण करवं. लग्ननुं दिग्मुख चक्र. पूर्व मेष, सिंह, धन उत्तर कर्क, वृश्चिक, मान वृष, कन्या, मकर दक्षिण RE ARRIA खल कहे जे के“अनिष्टदं दिक्प्रतिलोमलग्नं, पृष्ठोदये वावितकार्यनाशः" । "प्रतिखोम ( उलटी) दिशामां लग्न होय अने गमन करे तो अनिष्ट फळ मळे तथा पृष्ठोदयी लग्नमां गमन करे तो इचित कार्यनो नाश श्राय." जन्मलग्ने शुन्ना यात्रा जन्मराश्युदये तु न । तयोश्चोपचयस्थेषु राशि विष्टा परेषु न ॥२७॥ अर्थ-यात्रा करनार नृपादिकने जन्मलग्नमां यात्रा करवी शुन्न , श्राथी करीने एवं सूचव्यु के-प्रथम जन्मनु लग्न जाणीने पछी यात्रानुं लग्न आपq जोइए, ते विना लग्न श्रापवू नहीं, कारण के जन्मलग्न जाणीने दशा, आयुष्य अने ग्रहनुं बळ जोश्ने आपेलु यात्रादिक, मुहूर्त फळदायक श्राय बे. रत्नमाळामां कडं डे के___ "अज्ञातजन्मनोऽप्यन्यैर्यानं योज्यमिति स्मृतम् । प्रश्नलग्ननिमित्ताद्यैर्विज्ञाते सदसत्फले ॥१॥" । __“जन्मलग्न जाणवामां न होय तोपण प्रश्नलग्न अने निमित्त विगेरे अन्य चेष्टाए करीने शुनाशुन फळ जाणीने प्रयाणर्नु मुहूर्त आपq एम कडं ." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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