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॥ श्रारंलसिछि॥ __जन्मराशिना उदयमां यात्रा करवी शुल नथी, एटले के जन्ममां जे ठेकाणे चंड होय ते जन्मराशि कहेवाय . ते जन्मराशिनु ज लग्न होय तो तेमां यात्रा करवी शुन नथी. रत्नमाळामां तो "जन्मराशिना लग्नमां पण यात्रा करवी शुन्न " एम का ले. ते जन्मलग्न अने जन्मराशिनी अपेक्षाए जपचयस्थानमां एटले ३-६-१० अने ११ मा स्थानमा रहेली राशि यात्रामा शुल . ते सिवाय बीजा स्थानमां होय तो तेमां यात्रा करवी शुल्न नथी. विशेष ए ने जे-"शत्रुनी जन्मराशि के जन्मलग्न अथवा ते बन्नेना स्वामी तत्काळना लग्नथी चोथे के सातमे स्थाने होय त्यारे पण यात्रा करवाथी जय थाय ने, अने जो शत्रुनी जन्मराशि अने जन्मलग्ननां उपचयस्थानो चोथे के सातमे स्थाने होय तोपण जय श्राय ," एम रत्नमाळामां कडं बे.
पापैरस्तांबुगैर्दृष्टे युते वा जन्मलमन्ने ।
सौम्यग्रहैस्तु नैवं चेत्तदा यातुः पराजवः ॥ ७ ॥ अर्थ-जे कोई स्थानमा रहेली जन्मलग्ननी राशि यात्रालग्नना सातमा ने चोथा स्थानमा रहेला पापग्रहोए करीने युक्त होय अथवा तेमनी दृष्टि पम्ती होय, तथा ते ज जन्मलग्ननी राशि सातमा ने चोथा स्थानमा रहेला सौम्य ग्रहोए करीने युक्त के दृष्ट न होय तो (तेवे वखते) प्रयाण करनारनो परानव थाय. अर्थात् पापग्रहनी जेम सौम्य ग्रहोए युक्त अथवा दृष्ट होय तो पराजव न थाय. विशेष ए ने जे-यात्राने समये जन्मकुंकळी संबंधी आठमुं तथा बहुं स्थान क्रूर अने सौम्य ग्रहोए सहित होय तो ते अशुल ने. ते विषे दैवज्ञवलनमां कडंबे के-“वधः प्रयातुस्त्वरितिः प्रसूतौ, रंध्रारिने क्रूरशुनान्विते चेत्” । “जन्मनुं श्रावमुं अने बहुं स्थान जो क्रूर श्रने शुज ग्रहोए युक्त होय तो ते वखते शत्रु तरफ प्रयाण करनारनो वध थाय ."
अष्टमं स्वेन्मुलग्नाच्या ताज्यां षष्ठमथ द्विषः।
ताशिनाथयुक्तं वा लग्नं यातुरनर्थकृत् ॥शए । अर्थ-जन्मकाळना चंथी श्रने जन्मकाळना लग्नथी जे आठमुं लग्न ते यात्रामां तजवा योग्य ने अने ते बन्नेथी जे बहुं लग्न होय ते पण तजवा लायक बे. तथा शत्रुना जन्मलग्नयी अने जन्मराशिथी बछे स्थाने रहेली जे राशि ते जो लग्नमां होय तो तेने पण तजवी. तेमज जन्मराशिथी श्रने जन्मलग्नथी जे आठमी अने बड़ी राशि होय तथा शत्रुना जन्मलग्नथी अने जन्मराशिथी जे बही राशि होय ते गए राशिऊंना स्वामीए करीने युक्त एवं जे लग्न ते पण यात्रामां तजवा लायक के. श्रा सर्व प्रकारचें सन्न प्रयाण करनारने अनर्थकारक . श्रा विषे दैवज्ञवसनमां कडं ने के
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