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॥ तृतीयो विमर्शः॥ रह्या होय तो विधान् थाय, अने शनि साधे रह्या होय तो ते आळसु अने गुणहीन थाय बे. श्रा श्लोक राज्याभिषेकना लग्नमां पण लागु पमे बे.
चन्डे षष्ठाष्टमे मृत्युमूर्खत्वमथवा बटोः।
व्रतमोऽथ केशान्ते चौले चैवंविधो विधिः॥४५॥ अर्थ-चंड उछे के बाग्मे होय तो बटुकनुं मरण थाय अथवा ते मूर्ख रहे. व्रतना मोक्षमा ( मौंजीबंधन बगेवामां ), केशान्त (मुंमन )मां श्रने चौल कर मां के जे पोतपोताना कुळना श्राचार प्रमाणे पहेले अथवा त्रीजे वर्षे करवामां आवे रे तेमां पण श्रा प्रमाणे ज (एटले उपरना सामा श्राप श्लोकमां कह्या प्रमाणे ज) विधि जाणवो.
हवे अग्निस्थापन (अग्निहोत्र )नुं मुहूर्त कहे जे. वः परिग्रहं प्राहुः कृत्तिकारोहिणीमृगैः।
उत्तरात्रितयज्येष्ठापुष्यपौष्ण द्विदैवतैः॥४६॥ अर्थ-कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्ष, त्रण उत्तरा, ज्येष्ठा, पुष्य, रेवती अने विशाखा नक्षत्रमा अग्निनुं स्थापन कडं .
केन्मोपचयधीधर्मेष्वन्मुझसुरार्चितैः। . शेषैस्त्रिषड़दशायस्थैरादध्याजातवेदसम् ॥ ४॥ अर्थ-सूर्य के प्रस्थानमां (१-४-७-१०) रह्यो होय, चंड उपचय (३,६,१०,११) स्थानमा रह्यो होय, बुध पांचमे रह्यो होय, गुरु नवमे रह्यो होय,अने बीजा ग्रहो (मंगळ, शुक्र, शनि) त्रीजे, हे, दशमे अने अगीयारमे रह्या होय त्यारे अग्नि स्थापन करवो.
उदयेऽथ नवांशे वा राशीनां जलचारिणाम् ।
उदयस्थे च शीतांशोर्व हिरहाय शाम्यति ॥ ४ ॥ अर्थ-जळचर राशिना (कर्क, मकर, कुंल, मीन ) उदयमां अश्रवा नवांशमां थने चंजना उदयमा अग्नि तरत ज बुझाइ जाय .
क्रूराः कुर्युर्धने निःखमाढ्यं सन्तोऽन्नदं विधुः।
हन्युश्विझे ग्रहाः सर्वे लग्ने च झयमौ छिजम् ॥ ४॥ अर्थ-अग्निाधाननी कुंमळीमां जो बीजा स्थानमा क्रूर ग्रह रह्या होय तो ते ब्राह्मणने निर्धन करे , अने सौम्य ग्रह रह्या होय तो धनाढ्य करे , तथा चंड रह्यो होय तो ते ब्राह्मणने अन्नदातार करे बे. वळी आठमा स्थानमा कोइ पण ग्रह रह्यो होय तो तेनुं मरण पाय , तथा लग्नमां के चंनी साधे बुध अने शनि रह्या होय तो.
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