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॥ तृतीयो विमर्शः॥
१३३ "ज्यारे पुरुषनो राक्षसगण होय भने कुमारीनो मनुष्यगण होय त्यारे शुल राशिकूट, ग्रहनी मैत्री अने योनिनी शुद्धि होय तो ते शुन ."
हवे राशिकूट तथा राशिनु परस्पर वैर अने मित्रपणुं कहे .राशेरोजान्मृतिः षष्ठे सर्वाः स्युः संपदोऽष्टमे।
राशौ छिछादशे नैःस्व्यं खामिमैत्र्ये पुनः श्रियः ॥२५॥ अर्थ-विषम राशिथी उठे मरण पाय, आपमे सर्व संपत्ति थाय, विधादश (बीजे बारमे ) राशिमां निधनपणुं थाय, अने स्वामीनी मैत्रीमां लक्ष्मी प्राप्त थाय ने.
विस्तरार्थ-ज्यां बेनी (स्त्री पुरुषनी अथवा गुरु शिष्य विगेरेनी) राशि परस्पर बची श्रावमी होय तो ते बन्नेनुं षमष्टक ए नामर्नु राशिकूट कहेवाय . ए प्रमाणे बीजें बारमुं अने नवमुं पांचU विगेरे पण जाणवू. मेष, मिथुन विगेरे विषम राशिथी उनी राशि होय तो ते शत्रु षमष्टक कहेवाय ने, केमके ते राशिऊने परस्पर वैर . तेमां जेनी श्राग्मी राशि होय तेनुं मरण थाय ने एम रत्नमाला नाष्यमां कडं , अने विषम राशिथी ज आग्मी राशि होय तो ते प्रीति षष्टक कहेवाय ने, केमके ते राशिना स्वामीउने परस्पर मैत्री . तेथी करीने तेनुं आ प्रमाणे तात्पर्य जे.
"मकरवृषमीनकन्यावृश्चिककर्काष्टमे रिपुत्वं स्यात् ।
__ अजमिथुनधन्विहरिघटतुलाष्टमे मित्रताऽवश्यम् ॥१॥" "मकर, वृष, मीन, कन्या, वृश्चिक अने कर्कना श्रष्टकमां शत्रुपणुं थाय, श्रने मेष, मिथुन, धन, सिंह, कुंन अने तुलाना अष्टकमां अवश्य मित्रता थाय."
अहीं कोई शंका करे के-वैर अने मैत्री विगेरे बन्ने दंपत्यादिकना जन्मना लग्नमां विचारवा योग्य , केमके जन्मलग्न ज सर्वत्र बळवान् , तो अहीं जन्मराशिने श्राश्रीने केम वैर मैत्री कही ? आनो जवाव ए जे जे
__ "जन्मलग्नमिदमङ्गमङ्गिना, मेनिरे मन इतन्ऽमंदिरम् ।
__ सौहृदं च मनसोर्न देहयोर्मेलकस्तदयमिन्गेहयोः॥१॥" "जे जन्मलग्न ने ते प्राणीनुं अंग-शरीर मानेलु , अने चंपनुं स्थान (राशि) प्राणीनुं मन मानेगुं बे, तेथी मननी ज मित्राश् होय बे, शरीरनी होती नथी. तेथी करीने था चंजनी राशिनो मेलाप युक्त जे."
शंका-ज्यारे एम ने त्यारे राशिने श्राश्रीने मैत्री विगेरेनो विचार नले हो, परंतु ए स्थूळ विचार ले. तेथी करीने जन्मनी राशिमा रहेला नवांशोने विषे ते मैत्र्यादिकनो
१ आ बीया बारमुं भाषामां कहेवाय छे.
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