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________________ ॥ श्रारंसिधि॥ परंतु एकनुं जन्मनक्षत्र अने बीजार्नु नामनक्षत्र ए बेनो योग कदापि करवो नहीं." अर्थात् एकना जन्मनदतनी खबर न होय तो बन्नेनां नामनक्षत्रो ज लेवां. ए ज प्रमाणे गण, राशि विगेरेमां पण जाणवू. हवे सत्यावीश नक्षत्रोना गणो कहे - दिव्यो गणः किल पुनर्वसुपूष्यहस्तखात्यश्विनीश्रवणपौष्णमृगानुराधाः। स्यान्मानुषस्तु नरणी कमलासनईपूर्वोत्तरात्रितयशंकरदैवतानि ॥२०॥ रदोगणः पितृजराक्षासवासवैन्छचित्राहिदैववरुणाग्निजुजंगनानि । प्रीतिः खयोरति नरामरयोस्तु मध्या वैरं पलादसुरयोर्मृतिरन्त्ययोस्तु ॥ १॥ अर्थ-पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, स्वाति, अश्विनी, श्रवण, रेवती, मृगशीर्ष श्रने श्रनुराधा, ए ए नक्षत्रो देवगण बे. जरणी, रोहिणी, त्रण पूर्वा, त्रण उत्तरा अने श्रार्जी ए ए नक्षत्रो मनुष्यगण . (२०) मघा, मूल, धनिष्ठा, ज्येष्ठा, चित्रा, विशाखा, शतनिपक्, कृत्तिका अने अश्लेषा ए नव राक्षसगण . आमा बन्नेनो एक ज वर्ग होय तो अत्यंत प्रीति रहे, एकनो देववर्ग अने वीजानो नरवर्ग होय तो मध्यम प्रीति रहे, रास अने देववर्ग होय तो वैर रहे, तथा मनुष्य अने राक्षसवर्ग होय तो मृत्यु श्राय. कह्यु ले के "स्वकुले परमा प्रीतिर्मध्यमा देवमत्ययोः। _देवराक्सयोर्वैरं मरणं मर्त्यरक्षसोः॥१॥" “पोताना वर्गमां अत्यंत प्रीति रहे, देव अने मनुष्यने मध्यम प्रीति रहे, देव अने राक्षसने वैर पाय, अने मनुष्य तथा राक्षसने मृत्यु थाय, अर्थात् ते बे वर्गमां होय तो मरण थाय.” अन्निजित् नक्षत्र एकज विद्याधरना गणमां बे एम केटलाक कहे . विशेष ए ने जे-वर विगेरे मुख्य माणसनो राक्षसगण होय अने वहु विगेरे गौण माणसनो मनुष्यवर्ग होय तोपण ते बन्नेने शुन राशिकूट होय, तेना स्वामीनी मैत्री होय, योनिनी शुद्धि होय तथा नामीवेधनी शुद्धि होय तो ते योग शुल बे. ते विषे गर्ग कहे जे के "रक्षोगणो यदा पुंस: कुमारी नृगणा नवेत् । सन्नकूट १ खगप्रीति २ ोनिशुद्धि ३ स्तदा शुजम् ॥१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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