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________________ ॥ श्रारंसिद्धि॥ . हवे ग्रह पोताना वर्गमा रहेलो वे के बीजा वर्गमा रहेलो ? ते कहे बे. षमा त्र्यादिषु वर्गेषु यो ग्रहः खेष्ववस्थितः। स खवर्गगतो झेय एवमेवान्यवर्गगः ॥२४॥ अर्थ-कोर पण ग्रह ब वर्गमांना कोइ पण पोताना त्रण, चार अथवा उत्कृष्टथी पांच वर्गमा रहेलो होय, तो ते स्ववर्गमा रहेलो के एम जाणवू, अने एवी ज रीते एटले त्रण, चार के पांच वर्गमा रहेलो होय, पण ते बीजाना वर्गमा रहेलो होय तो ते अन्य वर्गमा रहेलो जाणवो. कोइ पण ग्रह उत्कृष्टथी पांच वर्ग सुधी ज श्रावी शके ने, परंतु कदापि नए वर्गमां श्रावी शकतो नथी, कारण के सूर्य अने चंड ए बे ग्रहो त्रिंशांशमां आवता ज नथी, तथा मंगळ, बुध, गुरु, शुक्र श्रने शनि ए ग्रहो होरामां आवता ज नश्री. श्रा प्रमाणे जे ग्रह पोतानापांच वर्ग सुधीमां श्रावतो होयते स्ववर्गमां आवेलो होवाश्रीज बळवान् , अने अन्य वर्गमां श्रावेलो होय तो ते निर्बळ जे. विशेष ए जे जे-"जे नवांशमां उ, पांच के चार गृहादिक मध्ये सौम्य ग्रहस्वामी मळे तो ब वर्गनो, पांच वर्गनो के चार वर्गनो ते नवांश सौम्य होवाथी प्रतिष्ठादिकना लग्नने विषे विशेषे करीने ग्रहण करवा लायक बे. ते सौम्य ग्रहनो श्रा रीते निश्चय करेलो . “सत्तमनवमा मेसे १ पंचमतश्या विसे २ मिणि उसो ३ । पढमतश्या य कक्के ४ सिंहे बो ५ कणी तळ ६॥१॥ अमनवमा य तुले ७ विनियलग्गे चउत्यय नवंसो छ । धणुलग्गि बसत्तमनवमा ए मयरंमि पंचम १० ॥२॥ बच्च्मा य कुंने ११ पढमो तल अमीण लग्गम्मि । चउपणवग्ग ब वग्गो एएसु नवंसएसु सुहो ॥ ३ ॥" __ "मेष लग्नमां सातमो अने नवमो नवांश, वृषमां पांचमो अने त्रीजो, मिथुनमां बनो, कर्कमां पहेलो भने त्रीजो, सिंहमां बनने, कन्यामां त्रीजो, तुलामां श्राठमो अने नवमो, वृश्चिक लग्नमां चोथो नवांश, धन लग्नमां बो, सातमो अने नवमो, मकरमां पांचमो, कुंजमां बो अने श्रापमो तथा मीन लग्नमां पहेलो श्रने बीजो, आटला नवांशोमां चार वर्ग, पांच वर्ग के वर्ग होय ते शुन बे." आटला नवांशोमां चार वर्गनी शुद्धि तो सर्वने जे, परंतु पांच अने उ वर्गनी शुद्धि तो केटलाएक नवांशोमां संपूर्ण रीते , अने केटलाएकमां केटलेक अंशे ज बे. तेनी स्पष्टता आ ग्रंथना बेहा श्लोकनी टीकामां लखेली ने, त्यांनी जाणी खेवी. केटलाएक श्राचार्यो त्रण ज वर्गनी शुधिए करीने अने बीजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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