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॥वितीयो विमर्शः।। हवे ग्रहोना तथा लग्नना स्पष्टीकरण माटे तेनी नुक्तिने उपयोगी सर्व षड्वर्गर्नु साधारण लिप्तामान कहे .षड्दर्गेऽष्टादशरज नव ए० षडू ६०० के २०० साऊँ शतानि षष्टिश्च ६०। क्रमशो गृहहोरादौ लिप्ताः स्युः प्रजुरिद नवांशः ॥ २३ ॥ ___ अर्थ- वर्गनी मध्ये मेषादिक गृहो (स्थानो )मांना दरेकने अढारसो अढारसो लिप्ता ने, होरानी लिप्ता नवसो बे, केमके गृहथी अर्धी होरा जे. जेष्काणनी सिताउँ
सो बे, कारण के गृहथी त्रीजे जागे जेष्काण ,एरीते नवांशोनी बसें लिप्ता, पादशांशनी दोढसो लिप्ता ने त्रिंशांशनी साठ लिप्ता ने. साठ विलिप्ता (पळ)नी एक लिप्ता (घमी) थाय बे एवं आगळ कहेशे. या वर्गनुं फळ एजे-"तिथि विगेरेना बळश्री चंजनुं बळ सो गएं , तेनाथी लग्न हजार गणुं वधारे बळवान् , तेनाथी पण होरा विगेरे सर्वे उत्तरोत्तर पांच पांच गणा वधारे बळवान् बे.” ए प्रमाणे बृहत् जातक वृत्तिमां कडं . हवे श्रा बए वर्गमां नवांशनुं ज प्रधानपणुं ते कहे जे.-श्रा नए वर्गमा प्रतिष्ठा, विवाह विगैरे सर्वे कार्योने विषे नवांश ज वधारे समर्थ (बळवान् ) बे. ए विषे सन कहे जे के
"स्वाः नक्षत्रफलं तिथ्यधै तिथिफलं समादेश्यम् ।
होरायां वारफलं लग्नफखं त्वंशके स्पष्टम् ॥ १॥" "नक्षत्रनुं फळ पोताना अर्ध जागमा स्पष्ट , तिथिना अर्ध नागमां तिथि- फळ स्पष्ट ने, होराने विषे वारनुं फळ स्पष्ट के, तथा लगनुं फळ अंशकमां (नवांशमां) स्पष्ट बे."
अहो नवांशनु केवं प्राधान्य ? दैवज्ञवसने कहुं ले के"लग्ने शुल्नेऽपि यद्यशः क्रूरः स्यान्नेष्टसिद्धिदः।
लग्ने क्रूरेऽपि सौम्यांशः शुलदोऽशो बली यतः॥१॥" "लग्न शुल होय उतां जो अंश ( नवांश) क्रूर होय तो ते इष्ट सिधिने श्रापतो नथी, श्रने लग्न क्रूर होय बतां अंश सौम्य होय तो शुनकारक बे, कारण के अंश ज बळवान् ." तेमज "क्रूर अंश ( नवांश )मां रहेलो सौम्य ग्रह पण क्रूर श्राय , श्रने सौम्य अंशमा रहेखो कर ग्रह पण सौम्य श्राय ." एमसल कहे . "क्रूर अंशमा रहेला सौम्य ग्रहनी दृष्टि पण पुष्ट थाय , श्रने सौम्य अंशमां रहेता क्रूर ग्रहनी दृष्टि पण शुन (सौम्य ) थाय ." तथा ग्रहगोचरनी शुधिना विचारने समये “राशिना गोचरथी ग्रह शुल होय तोपण नवांशना गोचरे करीने जो शुल होय तो ज ते शुक्न थाय ने." इत्यादि लक्ष तमा श्रीपति कहे .
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