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________________ ७६ ॥ आरंभसिद्धि ॥ बृहत् जातकमां पण कधुं बे के - "प्रेष्काणाः स्युः स्वजवनसुतत्रित्रिकोणाधिपानां" पोताना स्थानना, पांचमा स्थानना ने नवमा स्थानना स्वामीना एम त्रण प्रेष्काणो होय.” केटलाएक आचार्यो राशिउंना सप्तांशपण कहे बे, तथा तेना स्वामी पण कहे बे, ते होरामकरंदमां या प्रमाणे कह्या बे. - " स्वर्दादोजे युग्मने द्यूनगेहाजण्यास्तज्ः सप्तमांशाः क्रमेण” विषम ( एकी राशिमां ) पोतानी राशिथी सप्तमांशो गएवा. सम ( बेकी राशिमां ) पोतानी राशिथी सातमी राशि जे होय त्यांथी सप्तमांशो गएवा. एटले मेष राशिमा पहेलो मेषनो सप्तमांश जाणवो, बीजो वृषजनो यावत् सातमो तुलानो ने वृष राशिमा पहेलो वृश्चिकनो, बीजो धननो यावत् सातमो वृषननो सप्तमांश जावो. आ प्रमाणे तेना जाणकार पुरुषोए सप्तमांश गएवा.' "" हवे नवांशो कहे बे. नवांशाः स्युरजादीनामजैणतुलकर्कतः । वर्गोत्तमाश्चरादौ ते प्रथमः पञ्चमोऽन्तिमः ॥ २१ ॥ अर्थ – मेषथी आरंजीने दरेक राशिमां नव नव नवांश । होय बे. तेमां मेष राशिना नवांश मेष आदि लइने नव सुधी गणवा, ( एटले के मेष राशिमां पहेलो नवांश मेपनो, बीजो नवांश वृषनो, त्रीजो नवांश मिथुननो, ए रीते नव सुधी गणतां नवमो नवांश धनो वे बे. ) ए रीते वृषना नवांशो मकरथी गएवा, मिथुनना नवांशो तुला गावा, तथा कर्कना नवांशो कर्कथी जगणवा. एजप्रमाणे सिंहना नवांशो मे पथी गणवा एटले के मेषनी ज जेवा, कन्याना वृषनी जेम, तुलाना मिथुननी जेम, ने वृश्चिना कर्कनी जेम गवा. ए ज रीते धन, मकर, कुंज ने मीनना नवांशो पण अनुक्रमे मेष, वृष, मिथुन ने कर्कनी जेवाज गएवा. या नवांशोनुं फळ पूर्णन श्रा प्रमाणे लखे बे. - "ति पण च सत्त नवमा रासीण नवसथा सुहा जम्मे । www पढम 5 अहम श्रहमा बघो पुए मञ्जिमो नेट ॥ १ ॥ " " जन्मने विषे राशिनो त्री जो, पांचमो, चोथो, सातमो ने नवमो ए पांच नवांशो सुखकारक एटले उत्तम जाणवा, पहेलो, बीजो अने आठमो ए त्रण नवांशो अधम (अशुभ) जाणवा, तथा बघो नवांश मध्यम जाणवो." वर्ग एटले समूह विषे जे उत्तम ते वर्गोत्तम कहेवाय बे, तेमां चर राशिमां पहेलो नवांश वर्गोत्तम जाणवो, स्थिर राशिमां पांचमो नवांश वर्गोत्तम जाणवो, अने दिवनाव राशिमां बेलो एटले नवमो नवांश वर्गोत्तम बे. अर्थात् आ रीते गएवाथी सर्वे राशिमां पोतपोताना नामनो नवांश वर्गोत्तममां आवे छे. वर्गोत्तमनुं फळ ए बे जे“वर्गोत्तममां उत्पन्न थयेला मनुष्यो पोताना कुळमां प्रधान थाय बे विगेरे.” बेल्लो नवांश पण अमुक राशिमां वर्गोत्तम होवाथी ते लग्नमां आदरवा योग्य बे. नहीं तो ते बेलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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