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॥हितीयो विमर्शः॥
ए संज्ञा सार्थक नहीं होवाथी यादृचिकी कहेवाय , ते संज्ञा यवनाचार्यना मजमां रूढ होवाथी अहीं कही . तथा विक्रम, सुख, वेश्म, धी, जामित्र श्रने विज विगेरे संज्ञा अन्वर्थ डे, तेथी करीने इष्ट मनुष्यनां विक्रम, सुख, घर, बुद्धि, विवाह अने हानि विगेरे अनुक्रमे ते ते स्थानोथी विचाराय . ए ज रीते लग्नश्री आरंजीने प्रथम विगेरे स्थानोनी तनु विगेरे संज्ञा नियमित कहेली ने, तेथी तेने अनुसारे करीने जागळ पर पण सर्व ठेकाणे प्रथम आदि स्थानोने ठेकाणे तनु आदि शब्दनो व्यवहार जाणी लेवो.
हवे राशिनां गृह (घर-स्थान), होरा, बेष्काण, नवांश, बादशांश अने त्रिंशांश नामना ब वर्गनुं स्वरूप बतावे .
मेषादीशाः कुजः १ शुक्रो ५ बुध ३ श्चन्यो ४ रवि ५ «धः ६ । शुक्रः कुजो गुरु ए मन्दो १० मन्दो ११जीव १५ इति क्रमात्॥१॥ अर्थ-श्रा वर्गना अधिकारमा राशिनु “गृह" एवं नाम बे. तेथी करीने मेष राशि (गृह)थी अनुक्रमे मंगळ १, शुक्र १, बुध ३, चंज ४, रवि ५, बुध ६, शुक्र , मंगळ , गुरु ए, शनि १०, शनि ११ अने गुरु १२, श्रा बार स्वामी जे. श्रानुं फळ “यो यो नावः स्वामिदृष्टो युतो वा” विगेरे पूर्वे कह्या प्रमाणे .
होरा रायमोजर्देऽन्छोरिन्धर्कयोः समे।
जेष्काणा ने त्रयस्तु व १ पञ्चम ५ त्रित्रिकोणपाः ए॥२०॥ अर्थ-राशिनो अर्ध नाग होरा कहेवाय , तेथी एक एक राशिमां बबे होरा होय वे. तेमा मेष विगेरे विषम राशिमां पहेली होरा रविनी थने वीजी होरा चंजनी होय ने, तथा वृष विगेरे सम राशिमां पहेली होरा चंपनी अने बीजी होरा सूर्यनी होय जे. होरानुं फळ ए ने जे-"सूर्यनी होरामां जन्मेलां वाळक तेजस्वी थाय ने, अने चंजनी होरामा जन्मेला मृञ् (कोमळ ) थाय ने इत्यादि" ए प्रमाणे जेष्काण विगेरेमां पण क्रूर तथा सौम्य स्वामीने अनुसारे क्रूरपणुं श्रने सौम्यपणुं समजवं. दरेक राशिमां त्रण त्रण जेष्काण होय . तेमां जे पोतानी जराशिनो ईशहोय ते प्रथम श्रेष्काणनो ईश होय जे, तेथी पांचमी राशिनो जे स्वामी होय ते बीजा श्रेष्काणनो ईश होय , तथा नवमी राशिनो जे स्वामी होय ते त्रीजा जेष्काणनो स्वामी होय . हरिनकृत खग्नशुधिमां पण कडं बे के
“दिक्काणो उ तिलागो सो पढमो निश्रयरासिश्रहिवश्णो ।
बी पंचमपहुँणो तळ पुण नवमगिहवश्णो ॥१॥" __ "दरेक राशिनो त्रीजो नाग जेष्काण कहेवाय बे. तेमां पोतानी राशिना अधिपतिनो पहेलो भेष्काण, तेथी पांचमी राशिना स्वामीनो बीजो वेष्काण अने नवमा गृहना स्वामीनो बीजो श्रेष्काण समजवो.”
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