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॥श्रारंसिधि ॥ 'अहीं जे चोथा स्थाननी पाताल श्रने अंबु संझा कही बे तथा दशमा स्थाननी मध्य थने व्योम संज्ञा कही ने, ते नूगोळनी रीते कही ने एम जाणवू. भूगोळनो मत एवो ले के-"सूर्य प्रातःकाळे पूर्व दिशामां उदय पामीने दक्षिण वाजुए फरतो फरतोमध्याह्न समये दशमा स्थानरूप व्योम (आकाश)ना मध्य नागमां श्रावीने सायंकाळे सातमे स्थाने अस्त पामे वे, अने तेज प्रमाणे रात्रिए पण फरतो फरतो मध्य रात्रिए चोथा स्थानरूप पाताळमां श्रश्ने पागे प्रातःकाळे पूर्व दिशामां उदय पामे ." श्रा रीते कह्यु बे. वळी पाताळ अंबुनुं (जळy ) स्थान डे ए प्रसिद्ध .
उपान्त्यं सर्वतोजऽमन्त्यं रिष्यमुदीरितम् ।
वदन्त्युपचयाहाँस्त्रिषड्दशैकादशान् पुनः ॥ १७ ॥ अर्थ-अगीयारमुं स्थान सर्वतोना कहेवाय बे, केमके ते स्थाने रहेलो ग्रह सर्वथा शुनकारक जे. बारमुं स्थान रिष्य कहेवाय बे. लग्नथी तथा चंथी गणतां त्रीजुं, बई, दशमुं अने श्रगीयारमुं स्थान उपचय नामे कहेवाय ने, केमके ते स्थानोमा रहेला पाप ग्रहो पण शुज फळदायक थाय बे. बाकीनां स्थानो अपचय एटले हानि करनारां बे, एम समजवू. तेनुं फळ था प्रमाणे कडं बे.
"कार्य यदुक्तं तऽपैति सिधिं वारे ग्रहे चोपचयईजाजि।
नीचर्दसंस्थेऽपचयस्थिते च यत्ते कृते चापि जवत्यसाध्यम् ॥१॥" __“जे कार्य करवानें कडं होय ते उपचय स्थानवाळी राशिमा रहेल ग्रहमां तथा वारमा सिधिने पामे , श्रने नीच राशिमां तथा अपचय स्थानमां ग्रह रह्यो होय तो यत्न कर्या बतां पण ते कार्य असाध्य थाय ने एटखे सिख श्रतुं नश्री." केन्च तुष्टयकंटकनामानि वपुः १ सुखा ४ स्त ७ दशमान १०। स्युःपणफराणि परत २-५-७-११स्तेन्योऽप्यापोक्लिमानीति३-६-ए-१२ ॥१॥
अर्थ-पहेलु, चोथु, सातमुं अने दशमुंए चार स्थानो केन्द्र, चतुष्टय अने कंटक नामे कहेवाय बे, ते दरेकनी पड़ीनां एटले बीजूं, पांचमुं, आठमुं श्रने अगीयारमु ए चार स्थानो पणफर नामे कहेवाय जे. तथा तेनी पीनां एटले त्रीजुं, बहुं, नवमुं अने बारमुं ए चार स्थानो श्रापोक्लिम नामे कहेवाय जे. केंजने विष रहेखा सर्वे ग्रहो संपूर्ण पराक्रमी होय , पणफरमा रहेला ग्रहो अर्ध पराक्रमी होय , अने श्रापोक्खिमने विषे तेथी अर्ध एटले चतुर्थाश पराक्रमवाळा होय जे. एम त्रैलोक्यप्रकाशमांकयुं बे. विशेष ए डे जे-संज्ञा बे प्रकारनी होय , एक अन्वर्थ अने बीजी यादृचिकी ( रूढिवाळी ). तेमां मुश्चिक्य, हिबुक, त्रिकोण, धुन, धू, त्रित्रिकोण, चतुरस्र, मेषूरण, रिष्य, केंज, चतुष्टय, कंटक, पणफर तथा श्रापोक्सिम अने कहेवामां श्रावशे एवी होरा, जेष्काण विगेरे
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