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________________ ॥ द्वितीयो विमर्शः ॥ "लग्नस्याद्यन्त नवांश ग्राह्य ( तजवा योग्य ) थइ जाय. ते विषे पूर्ण कहे वे केमध्येषु वलं पूर्णाहमध्यमं” “श्रदि, अन्त ने मध्यने विषे लग्ननुं वळ ( फळ ) अनुक्रमे पूर्ण, अपाने मध्यम बे.” हर्षप्रकाशमां पण कह्युं बे के - " वग्गुत्तमं विणा दिजा नेव चरमं नवंसगं कह वि" "वर्गोत्तम विना कोइ पण वखत बेल्लो नवांश ग्रहण करवो नहीं.” वर्गोत्तमना नवांशमां रहेलो ग्रह पण वर्गोत्तम कहेवाय बे छाने ते ( ग्रह ) अत्यंत बळवान् बे. ते विषे दैवज्ञवनमां कह्युं बे के "बलवानुदितांशस्थः शुद्धं स्थानफलं ग्रहः । दद्यात्तमांशे च मिश्रं शेषांशसंस्थितः ॥ ॥” "उदयना अंशमां रहेलो तथा वर्गोत्तमना अंशमां रहेलो ग्रह बळवान् बे अने ते स्थाननुं फळ शुद्ध (पूर्ण) झापे बे, अने बाकी ना अंशमां रह्यो होय तो ते मिश्र फळ आपे बे. "यतो य एव राशिः स्यात्स एव च नवांशकः । "" प्रोक्तं स्थानफलं शुद्धमतोऽस्मिन् सोपपत्तिकम् ॥ २ ॥” "कारण के जे राशि होय बे ते ज नवांशक होय बे ( अर्थात् ते राशिना नामनो नवांशक ज वर्गोत्तम होय बे ) तेथी करीने या नवांशने विषे स्थानफळ जे शुद्ध कधुं युक्ति युक्त बे." Jain Education International 66 हवे द्वादशांश तथा त्रिंशांशनुं स्वरूप बतावे बे. स्युर्द्वादशांशाः स्वगृदादथे शास्त्रिंशांशकेष्वोजयुजोस्तु राश्योः । क्रमोत्क्रमादर्थ ५ शरा ५ ष्ट शैले ७ न्द्रियेषु ५ नौमार्किगुरुज्ञशुक्राः २२ अर्थ - पोताना गृह ( स्थान ) थी बार बार द्वादशांशो होय बे. एटले के जे नामनी राशि होय ते नामनो पहेलो द्वादशांश जाणवो, बाकीना अगीयार द्वादशांशो तेनी पीनी गीयार राशिना नामवाळा जावा. जेमके मेष राशिमां पहेलो दादशांश मेषनो, बीजो वृषनो, त्रीजो मिथुननो, ए रीते गणतां बेल्लो ( बारमो ) द्वादशांश मीननो श्रावे. वृष राशिमां पहेलो द्वादशांश वृषनो, बीजो मिथुननो, ए रीते अनुक्रमे गणतां बेलो मेनो वे. ए रीते मिथुन राशिमां पहेलो मिथुननो, बीजो कर्कनो, ए रीते गणतां बेलो वृषनो आवे. पादशांशोना ईशो जे मेषादिकना ईशो बे ते ज जाणवा. दवे दरेक राशिमां त्रीश त्रीश त्रिंशांश होय बे. तेना ईशो आ प्रमाणे जाणवा - मेष, मिथुन विगेरे विषम (एक) राशिमां पांच, पांच, आव, सात ने पांच त्रिंशांशोना स्वामी अनुक्रमे मंगुळ, शनि, गुरु, बुध अने शुक्र जाणवा, छाने सम ( बेकी ) राशिमां ते अंशो तथा स्वामी उत्क्रमथी एटले पश्चानुपूर्वीए जाएवा. एटले के वृष, कर्क विगेरे सम राशिमां पांच, सात, आठ, पांच ने पांच, त्रिंशांशोना स्वामी शुक्र, बुध, गुरु, शनि श्रने मंगळ जाणवा. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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