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________________ चौथे आरे में सब मनुष्य अकर्मभूमिक बन जाते हैं। वर्ण आदि की शुभ पर्यायों में वृद्धि होती है। (5) सुषमा - तत्पश्चात् सुषमा नामक तीन कोडाकोडी सगारोपम का पांचवा आरा लगता है। इसका विवरण अवसर्पिणी काल के दूसरे आरे के समान है। वर्ण आदि की शुभ पर्यायों में क्रमशः वृद्धि होती जाती है। (6) सुषमा-सुषमा - फिर चार कोडाकोडी सागरोपम का छठा आरा लगता है। इसका विवरण अवसर्पिणी काल के प्रथम आरे के समान है। वर्ण आदि की शुभ पर्यायों में अनंत गुणी वृद्धि होती है। __ इस प्रकार दस कोडाकोडी सागरोपम का अवसर्पिणी काल और दस कोडाकोडी सागरोपम का उत्सर्पिणी काल होता है। दोनों मिलकर बीस कोडाकोडी सागरोपम का एक काल-चक्र कहलाता है। भरत और ऐरवत क्षेत्र में यह काल-चक्र अनादि काल से घूम रहा है और अनंतकाल तक घूमता रहेगा। अन्य क्षेत्रों पर कालचक्र का प्रभाव नही पडता। MORM me ACd8 Jah Education international Kaaraord I9CCCCCCC0666666A6AKSHAY For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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