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वाच्यार्थ के निर्धारण के सिद्धान्त नय और निक्षेप : ७९
वक्ता के अभिप्राय अथवा प्रसंग के अनुरूप शब्द के वाच्यार्थ को ग्रहण करने के लिए निक्षेपों की अवधारणा का बोध होना आवश्यक है। उदाहरण के रूप में किसी छात्र को कक्षा में प्रवेश करते समय कहा गया 'राजा आया' इस कथन का वाच्यार्थ किसी नाटक में मञ्च पर किसी पात्र को आते हए देखकर कहा गया 'राजा आया' इस कथन के वाच्यार्थ से भिन्न है। प्रथम प्रसंग में "राजा" शब्द का वाच्यार्थ है-राजा नामधारी छात्र है; जबकि दूसरे प्रसंग में राजा शब्द का वाच्यार्थ है-राजा का अभिनय करने वाला पात्र । आज भी हम 'महाराजाबनारस' और 'महाराजा ग्वालियर' शब्दों का प्रयोग करते हैं किन्तु आज इन शब्दों का वाच्यार्थ वह नहीं है जो सन् १९४७ के पूर्व था। वर्तमान में इन शब्दों का वाच्यार्थ द्रव्य निक्षेप के आधार पर निर्धारित होगा, जबकि सन् १९४७ के पूर्व वह भावनिक्षेप के आधार पर निर्धारित होता था । 'राजा' शब्द कभी राजा नामधारी व्यक्ति का वाचक होता है तो कभी राजा का अभिनय करने वाले पात्र का वाचक होता है । कभी वह भतकालीन राजा का वाचक होता है तो कभी वह वर्तमान में शासन करने वाले व्यक्ति का वाचक होता है। निक्षेप का सिद्धान्त हमें यह बताता है कि हमें किसी शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण उसके कथन-प्रसंग के अनुरूप ही करना चाहिए अन्यथा अर्थबोध में अनर्थ होने की संभावना बनी रहेगी। निक्षेप का सिद्धान्त शब्द के वाच्यार्थ के सम्यक निर्धारण का सिद्धान्त है, जो कि जैन दार्शनिकों की अपनी एक विशेषता है।
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