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७८ : जैन भाषादर्शन
को दिया गया वह शब्द संकेत है - जिसका अपने निष्पन्न अर्थ से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है । कोई भी शब्द पर्यायवाची नहीं माना जा सकता है ग्रहण होता है ।
उस शब्द को सुनकर उस व्यक्ति या वस्तु में संकेत ग्रहण होता है। नाम किसी वस्तु या व्यक्ति प्रचलित अर्थ, व्युत्पत्तिपरक अर्थ और गुण यह स्मरण रखना चाहिए कि नामनिक्षेप में क्योंकि उसमें एक शब्द से एक ही अर्थ का
स्थापनानिक्षेप – किसी वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र में उस मूलभूत वस्तु का आरोपण कर उसे उस नाम से अभिहित करना स्थापना निक्षेप है । जैसे जिन प्रतिमा को जिन, बुद्ध-प्रतिमा at बुद्ध और कृष्ण की प्रतिमा को कृष्ण कहना । नाटक के पात्र, प्रतिकृतियाँ, मूर्तियाँ, चित्र - ये सब स्थापनानिक्षेप के उदाहरण हैं । जैन आचार्यों ने इस स्थापनानिक्षेप के दो प्रकार माने हैं
१. तदाकार स्थापनानिक्षेप और २. अतदाकार स्थापनानिक्षेप ।
वस्तु की आकृति के अनुरूप आकृति में उस मूल वस्तु का आरोपण करना यह तदाकार स्थापनानिक्षेप है । उदाहरण के रूप में गाय की आकृति के खिलौने को गाय कहना । जो वस्तु अपनी मूलभूत वस्तु की प्रतिकृति तो नहीं है किन्तु उसमें उसका आरोपण कर उसे जब उस नाम से पुकारा जाता है तो वह अतदाकार स्थापनानिक्षेप है । जैसे हम किसी अनगढ़ प्रस्तर खण्ड को किसी देवता का प्रतीक मानकर अथवा शतरंज की मोहरों को राजा, वजीर आदि के रूप में परिकल्पित कर उन्हें उस नाम से पुकारते हैं । '
द्रव्यनिक्षेप - जो अर्थ या वस्तु पूर्व में किसी पर्याय अवस्था या स्थिति में रह चुकी हो अथवा भविष्य में किसी पर्याय अवस्था या स्थिति में रहने वाली हो उसे वर्तमान में भी उसी नाम से संकेतित करना - यह द्रव्य निक्षेप है । जैसे कोई व्यक्ति पहले कभी अध्यापक था, किन्तु वर्तमान में सेवानिवृत्त हो चुका है उसे वर्तमान में भी 'अध्यापक' कहना अथवा उस विद्यार्थी को जो अभी डाक्टरी का अध्ययन कर रहा है- 'डाक्टर' कहना अथवा किसी भूतपूर्व विधायक को तथा वर्तमान में विधायक का चुनाव लड़ रहे व्यक्ति को विधायक कहना - ये सभी द्रव्य निक्षेप के उदाहरण हैं । लोकव्यवहार में हम इस प्रकार की भाषा के अनेकशः प्रयोग करते हैं, यथा - वह घड़ा जिसमें कभी घी रखा जाता था वर्तमान काल में चाहे वह घी रखने के उपयोग में न आता हो फिर भी घी का घड़ा कहा जाता है ।"
भावनिक्षेप - जिस अर्थ में शब्द का व्युत्पत्ति या प्रवृत्ति निमित्त सम्यक् प्रकार से घटित होता हो वह भावनिक्षेप है, जैसे- किसी धनाढ्य व्यक्ति को लक्ष्मीपति कहना, सेवाकार्य कर रहे व्यक्ति को सेवक कहना आदि ।
१. यत्तु वस्तु तदर्थ वियुक्तं तदभिप्रायेण स्थाप्यते चित्रादौ तादृशाकारम् / अक्षादौ च निराकारम् ।
२. भूतस्य भाविनो वा भावस्य कारणं यन्निक्षिप्यते स
- जैनतर्कभाषा, निक्षेप परिच्छेद पृ० ६३ द्रव्यनिःक्षेपः; यथाऽनुभूतेन्द्र पर्यायोऽनुभविष्यमाणेन्द्र पर्यायो वा इन्द्रः, अनुभूताघृताधारत्वपर्यायेऽनुभविष्यमाणघृताघारत्वर्याये च घृत घटव्यपदेशवत तेन्द्रशब्द व्यपदेशोपपत्तेः ।
-- जैनतर्कभाषा, निक्षेप परिच्छेद १० ६४
३. तत्त्वार्थ सूत्र – विवेचक पं० सुखलाल जी पृ० ७ ।
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