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________________ ३० : जैन भाषादर्शन शब्द की परिभाषा शब्द ध्वनि-संकेत है, फिर भी हमें यह स्मरण रखना होगा कि सभी प्रकार की ध्वनियाँ शब्द नहीं कही जा सकती हैं। भाषा के सन्दर्भ में 'शब्द' का तात्पर्य वर्णात्मक ( अक्षरात्मक) सार्थक ध्वनि-संकेत से है। अभिधानराजेन्द्रकोश में शब्द को जैनाचार्यों द्वारा दी गई कतिपय परिभाषाओं का उल्लेख हुआ है। सामान्यतया श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य वर्गों की नियत क्रम में होनेवाली ध्वनि को 'शब्द' कहा जाता है। यद्यपि शब्द की यह परिभाषा उसके समग्र स्वरूप का प्रतिपादन नहीं करती है क्योंकि शब्द मात्र वर्णों की नियत क्रम में होनेवालो ध्वनि नहीं है किन्तु अर्थबोध भी उसका अपरिहार्य तत्त्व है । वर्णों की नियत क्रम में होनेवाली ध्वनि से अर्थबोध होता है । इनमें निम्न तीन बातें आवश्यक हैं-(१) ध्वनि का वर्णात्मक या अक्षरात्मक होना, (२) उसका नियत क्रम में होना और (३) उसके द्वारा अर्थबोध का होना । शब्द के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि 'शब्द्यतेप्रतिपाद्यते वस्त्वनेनेति शब्दः' अर्थात् जिसके द्वास अर्थ या वस्तु का प्रतिपादन होता है यही शब्द है । शब्द की इस परिभाषा को पुष्टि पंतजलि के महाभाष्य की वृत्ति से भी होती है, उसमें कहा गया है—'अथ गौरित्यत्र कः शब्दः ? गकारौकारविसर्जनीयाः इति भगवानुपवर्षः । श्रोत्रग्रहणे ह्यर्थं शब्दशब्दः प्रसिद्धः । यद्येवमर्थप्रत्ययो नोपपद्यते । अतो गकारादिव्यतिरिक्तोऽन्यो गोशब्दोऽस्ति, यतोऽर्थप्रतिपत्तिः स्यात्' । अर्थात्, 'शब्द उस ध्वनिसमूह को नहीं कहते, जिनके संयोग से तथाकथित शब्द-रूप बनता है, बल्कि शब्द वह है जिससे किसो अर्थ का विनिश्चय या प्राप्ति होती है। वस्तुतः शब्द अर्थ (वस्तु) का प्रतिपादक होता है। वाच्यार्थ का प्रतिपादन ही शब्द की शक्ति है। यदि उससे वस्तुतत्त्व (वाच्य-विषय या अर्थ) का प्रतिपादन नहीं होता है तो वह निरर्थक ध्वनि ही होगो । सार्थक ध्वनि ही शब्द कही जाती है। भर्तृहरि ने शब्द को अर्थ से अवियोज्य माना है।" जैनाचार्यों ने भी शब्द और अर्थ में अवियोज्य सम्बन्ध तो माना है फिर भी वे उनमें तद्रूपता या तादात्म्य सम्बन्ध नहीं मानते हैं, मात्र वाच्यवाचक सम्बन्ध मानते हैं। शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को लेकर हमने आगे चर्चा की है। यहाँ हमारा प्रतिपाद्य यही है कि वस्तु वाच्यत्व ही शब्द का वास्तविक धर्म है । जैन के अनुसार शब्द वह है जिसमें वाच्यार्थ की सांकेतिक शक्ति है । वाच्यत्व का गुण शब्द में है किन्तु उसका वाच्य उससे भिन्न है । शब्द वाचक है और वस्तु वाच्य है । भाषायोज्ञान में अर्थबोध को प्रक्रिया __ जेनों के अनुसार भाषाजन्य ज्ञान श्रुतज्ञान है। शब्द को सुनकर उसके वाक्यार्थ को जानना तथा उसके ज्ञात अर्थ को पुनः शब्दों के माध्यम से प्रतिपादित करना श्रुतज्ञान का कार्य है । श्रुतज्ञान का मूल आधार शब्द का उच्चारण और श्रवण है। शब्दों को सुनकर अर्थ का बोध किस प्रकार होता है यह एक विचारणीय प्रश्न है । भाषा १. श्रोत्रेन्द्रियग्राह्यनियतक्रमवर्णात्मनि ध्वनौ। -अभिषानराजेन्द्र भाग ७ पृ. ३३८ । २. प्रतिपाद्यते वस्त्वनेनेति शब्दः । -वही।। ३. भाषातत्त्व और वाक्यपदीय, पृष्ठ ११७ ।। ४. नित्याः शब्दार्थसम्बन्धास्तत्राम्नाता महर्षिभिः ।-वाक्यपदीय ११२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002763
Book TitleJain Bhasha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1986
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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