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अध्याय २
भाषा और लिपि भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण
जहाँ तक भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न है, यह कहना अत्यन्त कठिन है कि भाषा का प्रारम्भ कब हुआ और किसने किया । जैन साहित्य में भी भगवान् ऋषभदेव को लिपि का आविष्कर्ता बताया गया है, भाषा का नहीं।
___ जहाँ तक भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न है, हमें जैन साहित्य में कहीं भी ऐसा उल्लेख देखने में नहीं आया, जिसमें यह बताया गया हो कि भाषा का प्रारम्भ अमुक व्यक्ति या अमुक समय में हुआ । जैन आगम प्रज्ञापनासूत्र में भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न उठाया गया है, उसमें गौतम ने महावीर के सम्मुख भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में निम्न चार प्रश्न उपस्थित किये हैं-(१) हे भगवन् ! भाषा का प्रारम्भ कब से है (२) भाषा की उत्पत्ति किससे होती है (३) भाषा की संरचना (संस्थान) क्या है और (४) उसका पर्यवसान कहाँ है ?
___इन प्रश्नों में प्रथम प्रश्न का उत्तर देते हुए महावीर ने कहा- 'भाषा का प्रारम्भ जीव (प्राणी जगत्) से है।' महावीर का यह उत्तर वर्तमान युग की भाषा वैज्ञानिक खोजों से प्रमाणित हो जाता है। भाषा प्राणी जगत् में ही सम्भव है। यह बात अलग है कि विभिन्न प्राणियों में अथवा मानव इतिहास की विभिन्न अवस्थाओं में भाषा का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहा हो, परन्तु इतना निश्चित सत्य है कि प्राणो जगत् के अस्तित्व के साथ भाषा का भी अस्तित्व जुड़ा हुआ है । भाषा आत्माभिव्यक्ति का साधन है और यह आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति सभी प्राणियों में पाई जाती है। सभी प्राणी आत्माभिव्यक्ति के लिए विशिष्ट प्रकार के ध्वनि संकेतों अथवा शारीरिक संकेतों का प्रयोग करते हैं। जैन चिन्तकों ने भाषा को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया है-(१) अक्षरात्मक भाषा और (२) अनक्षरात्मक भाषा । जैन दर्शन में मनुष्यों की भाषा को अक्षरात्मक और मनुष्येतर प्राणियों तथा अत्यल्पवय के बालकों एवं मूक मनुष्यों की भाषा को अनक्षरात्मक भाषा के रूप में
न्य किया गया है। आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि पश-पक्षीजगत् में अपनी आत्माभिव्यक्ति के लिए ध्वनि एवं शारीरिक संकेतों का उपयोग होता है, अतः १ भासा णं भंते ! किमादिया, किंपवहा, किंसंठिया, किंपज्जवसिया? गोयमा ! भाषा णं जीवादिया, सरीरप्पभवा, वज्जसंठिया लोगतं पंज्जवसिया पण्णत्ता।
-प्रज्ञापना, भाषापद २. भाषा लक्षणो द्विविधः साक्षरोऽनक्ष रश्चेति ।
-सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थ-टीका), ५।२४।२९४।१२. ३. अक्खरगया अणुवधादिदिय सण्णिपंचिदिय पज्जत्त भासा । तत्थ अणक्खरगया बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिदियाणं मुहसमुष्मदा बाल मुअसण्णिपंचिदिय भाषा च ।
-धवला, १३१५-५-२६।२२१११०.
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