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अनुक्रमणिका
अध्याय १ विषय - प्रवेश
१-११
आत्माभिव्यक्ति प्राणीय प्रकृति १; आत्माभिव्यक्ति का साधन : भाषा १; भाषा और भाषा - दर्शन २; पाश्चात्य चिन्तन में भाषा दर्शन का विकास २; भारतोय चिन्तन में भाषा दर्शन का विकास ४; जैन भाषा दर्शन की समस्याएँ ५; जैन परम्परा में भाषा-विश्लेषण का एक प्राचीन सन्दर्भ ५; विभज्यवाद : समकालीन भाषादर्शन का पूर्वरूप ९.
अध्याय २ भाषा और लिपि
१२-२७
भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण १२; भाषा की उत्पत्ति के अन्य सिद्धान्त और जेनदर्शन १३; विचार और भाषा १५; भाषा के प्रकार १७; अक्षरात्मक भाषा के प्रकार १९; अनक्षरात्मक भाषा २०; भाषा के मूल उपादान २१; अक्षर / वर्ण की परिभाषा २१; अक्षर के भेद २२; स्वर और व्यंजन २३; मातृकाक्षर २४; लिपि २४.
अध्याय ३ जैन शब्द - दर्शन
-२८-५८
भाषा और शब्द २८; शब्द की परिभाषा ३०; भाषायीज्ञान में अर्थबोध की प्रक्रिया ३०; क्या भाषा रूप में परिणत शब्द पौद्गलिक ही है ? ३३; शब्द की आण्विक संरचना का सिद्धान्त ३४; शब्द की अनित्यता ३६; शब्द अर्थ कैसे पाता है ३७; शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण ( नामकरण ) ३८; वर्ण संख्या के आधार पर ३८; चेतना लक्षण के आधार पर ३८; जातिवाचक अथवा व्यक्तिवाचक होने के आधार पर ३८; त्रिविधनाम ३९; द्रव्य, गुण और पर्याय के आधार पर ३९; लिङ्ग के आधार पर ३९; चतुर्विधनाम ३९; पञ्चविधनाम ३९; षड्विधनाम ४०; सप्तविधनाम ४० ; अष्टविधनाम ४०; नवविधनाम ४१ ; दशविधनाम ४१; अनेकार्थक शब्दों के वाच्यार्थ निर्धारण की समस्या ४२ ; शब्द का वाच्य सामान्य (जाति) या विशेष (व्यक्ति) ४४; शब्द और उसके वाच्यार्थ का सम्बन्ध ४७; शब्द और अर्थ के सम्बन्ध की अनित्यता ४८; स्फोटवाद पूर्वपक्ष ५०; स्फोटवाद का खण्डन ५१; अपोहवाद : बौद्धों का पूर्वपक्ष ५२; अपोहवाद की समालोचना ५३; आकृति - वाद और जैनदर्शन ५५; पद का स्वरूप ५७; शब्द, पद और वाक्य का अन्तर ५८. अध्याय ४ जैन वाक्यदर्शन
५९-७२
जैनदर्शन में वाक्य का स्वरूप ५९; वाक्य के स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न मत और उनकी समालोचना ६०; आख्यात पद ही वाक्य है ६०; पदों का संघात वाक्य है ६१; सामान्य तत्त्व (जाति) ही वाक्य है ६२; वाक्य अखण्ड इकाई है ६३; क्रम
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