SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापो का सोना अच्छा है और धर्मी का जागना' । उपयुक्त उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है कि वक्ता को उसके प्रश्न का विश्लेषण पूर्वक उत्तर देना ही विभज्यवाद है। प्रश्न के उत्तरों की यह विश्लेषणात्मक शैली विचारों को सुलझाने वाली तथा सत्य के अनेक आयामों को स्पष्ट करने वाली है। आधुनिक भाषा-विश्लेषणवाद किसी सोमा तक कथन को विश्लेषित करने वाली इस पद्धति को स्वीकार करके चलता है। भाषा-विश्लेषणवाद का मूलभूत उद्देश्य कथन के उन अन्तिम घटकों के अर्थ स्पष्ट करना है जिन्हें उन्होंने तार्किक अणु (Logical Atom) कहा है। किसी कथन के वास्तविक प्रतिपाद्य का पता लगाने के लिए यह पद्धति उस कथन को विश्लेषित करके यह स्पष्ट करती है कि उस कथन का वास्तविक तात्पर्य क्या है । यह सत्य है कि आज भाषा विश्लेषणवाद एक विकसित दर्शन के रूप में हमारे सामने आया है किन्तु इसके मूल बीज बुद्ध और महावीर के विभज्यवाद में उपस्थित हैं । न केवल इतना ही अपितु जैन, बौद्ध और वैयाकरण दर्शन के आचार्यों ने भाषा दर्शन के जो विविध आयाम प्रस्तुत किये हैं वे अभी गम्भीर विवेचन की अपेक्षा रखते हैं। शब्द के वाच्यार्थ के प्रश्न को लेकर भारतीय दार्शनिकों ने जितनी गम्भीरता से चिन्तन किया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और कोई भी भाषा दर्शन उसकी उपेक्षा करके आगे नहीं बढ़ सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि पश्चिम में विकसिक हो रहे इस भाषा दर्शन को भारतीय भाषा दर्शन के सन्दर्भ में देखा व परखा जाये। आशा है कि भाषा दर्शन की इन प्राचीन और अर्वाचीन पद्धतियों के माध्यम से मानव सत्य के द्वार को उद्घाटित कर सके। १. (अ) भगवतीसूत्र १२१२ । (ब) विभज्यवाद : समकालीन भाषाविश्लेषणदर्शन का पूर्वरूप-डॉ. सागरमल जैन-परामर्श खण्ड ६ अंक ४ पृ० ३५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002763
Book TitleJain Bhasha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1986
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy