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विषय-सूची प्रथम सर्ग - मंगलाचरण, लघुता-प्रदर्शन, सज्जन-उपकार-वर्णन दुर्जन- स्मरण, काव्य की महत्ता, भ.
महावीर के जन्म से पूर्व भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक स्थिति का चित्रण । द्वितीय सर्ग - जम्बूद्वीप, भारतवर्ष, कुण्डनपुर और वहां के निवासी स्त्री-पुरुषों आदि का कवित्वमय
वर्णन । तृतीय सर्ग - राजा सिद्धार्थ और उनकी रानी प्रियकारिणी का साहित्यिक वर्णन । चतुर्थ सर्ग - वर्षा ऋतु का वर्णन, प्रियकारिणी द्वारा सोलह स्वप्न-दर्शन, उनके फल का वर्णन और
भ. महावीर का गर्भातरण । पंचम सर्ग - भगवान् की माता की सेवार्थ कुमारिका देवियों का आगमन, सेवा-सुश्रूषा-वर्णन एवं उनके
प्रश्नों का माता द्वारा दिये गये उत्तरों का वर्णन । षष्ठ सर्ग - प्रियकारिणी के गर्भ-वृद्धि का चमत्कारिक वर्णन, वसन्त ऋतु का सुन्दर वर्णन और भगवान्
महावीर का जन्म । सप्तम सर्ग - देवालयों में घंटादि के शब्द होना, अवधि से भगवान् का जन्म जान कर देव-इन्द्रादिकों
का कुण्डनपुर आना और भगवान् को लेजाकर सुमेरुपर्वत पर क्षीर सागर के जल से
अभिषेक करना, पुनः लौटकर भगवान् का माता-पिता को सौपने का सुन्दर वर्णन । सष्टम सर्ग - भगवान् की बाल-लीलाओं का वर्णन, कुमार-अवस्था प्राप्त होने पर पिता द्वारा भगवान्
के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखना और संसार की दुर्दशा का चित्र खींच कर भगवान्
द्वारा उसे अस्वीकार करना । नवम सर्ग - भगवान् द्वारा जगत् की दुर्दशा का विचार और शीत ऋतु का वर्णन । दशम सर्ग - भगवान् का संसार से विरक्त होकर अनुप्रेक्षा चिन्तन करना, लौकान्तिक देवों द्वारा वैराग्य
का समर्थन करना, देवदिकों का आना, भगवान् का दीक्षा लेना और सिंह-वृत्ति से बिहार
करना । एकादश सर्ग - भावान् द्वारा अपने पूर्व भवों का चिन्तवन करना, और पूर्व भवों में प्रचारित दुर्मतों
के उन्मूलन एवं संचित कर्मों के क्षपण करने के लिए दृढ़ चित्त होना । द्वादश सर्ग - ग्रीष्म ऋतु का साहित्यिक वर्णन, गौतम का समवशरण में गमन, भगवान् से प्रभावित
होकर दीक्षा-ग्रहण और भगवान् की दिव्यध्वनि का प्रकट होना । ग्यारह गणधरों का परिचय, भगवान् द्वारा ब्राह्मणत्व का सुन्दर निरूपण और सभी गणधरों
की दीक्षा लेने का वर्णन । पंचदश सर्ग - भगवान् के उपदेश से प्रभावित हुए तात्कालिक राजा लोगों का एवं अन्य विशिष्ट लोगों
का जैन धर्म स्वीकार करना । षोडश सर्ग - अहिंसा धर्म का सुन्दर वर्णन । सप्तदश सर्ग - मदों के निषेध-पूर्वक सर्व जीव समता का सुन्दर वर्णन और कुछ पौराणिक आख्यानकों
का दिग्दर्शन । अष्टादश सर्ग - अवसर्पिणीकास्व, भोग-भूमि और कर्मभूमि का तथा मुनि और गृहस्थ धर्म का सुन्दर
वर्णन ।. . एकोनविंश सर्ग - स्याद्वाद, सप्तभंग, और वस्तु की नित्यानित्यात्मक रूप अनेक-धर्मात्मकता का वर्णन, जीवों
के भेद-प्रभेद और सचित्त-अचित्त आदि का सुन्दर वर्णन । विंशतितम सर्ग - सर्वज्ञता की सयुक्तिक सिद्धि ।
78-86 87-96
97-104
105-112
113-124
125-132
133-142 143-153
154-160
161-185
186-198 199-205
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