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________________ 59 श्लोकों में किया है । रात्रि के बीत जाने पर और घोरातिघोर उपद्रवों के करने पर भी जब रुद्र ने भगवान् को अविचल देखा, तो लज्जित होकर अपनी स्त्री के साथ उनकी स्तुति करके तथा आप महति महावीर हैं ऐसा नाम कह कर अपने स्थान को चला गया । पुनः भगवान् उज्जयिनी से विहार करते हुए क्रमशः कौशाम्बी पहुँचे और दुर्धर अभिग्रह के पूरे होते ही चन्दना के द्वारा प्रदत्त आहार से पारणा की, जिससे वह बन्धन-मुक्त हुई । चन्दना की विशेष कथा दि. श्वे. शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है, विशेष जिज्ञासु पाठकों को वहां से जानना चाहिए । पुनः विहार करतेहुए भगवान् जृम्भिका ग्राम के बाहिर बहने वाली ऋजुकूला नदी के किनारे षष्ठोपवास का नियम लेकर एक शिला पर ध्यानस्थ हो गये और वैशाख शुक्ल दशमी के अपराह्न में क्षपक श्रेणी मांडकर और अन्तर्मुहूर्त में घातिया कर्मों का विनाश कर केवल ज्ञान को प्राप्त किया । चौदहवें अध्याय में भगवान् के ज्ञान कल्याणक का ठीक वैसा ही वर्णन किया गया है, जैसा कि पुराणों में . तीर्थङ्कर का किया गया है । किन्तु सकल कीर्ति ने कुछ नवीन बातों का भी इस प्रकरण में उल्लेख किया है - (१) भगवान् के ज्ञान कल्याणक को मनाने के लिए जाते समय इन्द्र के आदेश से बलाहक देव ने जम्बू द्वीप प्रमाण एक लाख योजन विस्तार वाला विमान बनाया । यथा तदा बलाहकाकारं विमानं कामकाभिधम् । जम्बूद्वीपप्रमं रम्यं मुक्तालम्बनशोभितम् ॥१३॥ नानारत्नमयं दिव्यं तेजसा व्याप्त दिग्मुखम् । किङ्किणीस्वनवाचाल चक्रे देवो बलाहकः ॥१४॥ इसी प्रकार के पालक विमान का विस्तृत वर्णन श्वे, प्राकृत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और संस्कृत त्रिवष्ठिशलाका पुरुष चरित में मिलता है, जिस पर कि बैठ करके सपरिवार इन्द्र भगवान् के जन्म कल्याणादि के करने को आता है । यथा आदिशत्पालकं नाम वासवोऽप्याभियोगिकम । असम्भाव्यप्रतिमानं विमानं क्रियतामिति ॥३५३।। तत्कालं पालकोऽपीशनिदेशपरिपालकः । रत्नस्तम्भसहस्रांशुपूरपल्लविताम्बरम् ॥३५४॥ गवाक्षरक्षिमादेव दीर्धेदर्दीष्मदिव ध्वजैः । वेदीभिर्दन्तुरमिव कुम्भै पुलकभागिव ॥३५५॥ पञ्चयोजनशत्युच्चं विस्तारे लक्षयोजनम् । इच्छानुमानगमनं विमानं पालकं व्यधात् ॥३५६।। (त्रिषष्ठि पुरुषचरितं पर्व १, सर्ग २) जहां तक मेरा अध्ययन है, किसी अन्य दि. ग्रन्थ में मुझे इस प्रकार के पालक या बलाहक विमान के बनाने और उस पर इन्द्र के आने का उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं हुआ है । ये पालक या बलाहक विमान दो नहीं, वस्तुतः एक ही हैं यह उद्धृत श्लोकों से पाठक स्वंय ही समझ जायंगे । (२) श्वे. शास्त्रों के अनुसार सौधर्मेन्द्र उस विमान में अपनी सभी परिषदों के देवों, देवियों और अन्य परिजनों के साथ बैठकर आता है । किन्तु सकलकीत सका कुछ उल्लेख नहीं किया है। (३) सकलकीर्ति ने यह भी वर्णन किया है कि कौन सा इन्द्र किस वाहन पर सवार होकर आता है । यथा (१) सौधर्मेन्द्र-ऐरावत गजेन्द्र पर । (२) ईशानेन्द्र-अश्व वाहन पर । (३) सनत्कुमारेन्द्र-मृगेन्द्र वाहन पर । (४) माहेन्द्र-वृषभ वाहन पर । (५) ब्रह्मेन्द्र-सारस वाहन पर । (६) लान्तवेन्द्र-हंस वाहन पर । (७) शुक्रेन्द्र-गरुड वाहन पर । (८) शतारेन्द्र-मयूर वाहन पर । (९) आनतेन्द्र-पुष्पक विमान पर । (१०) प्राणतेन्द्र-पुष्पक विमान पर (११) आरणेन्द्रपुष्पक विमान पर । (१२) अच्युतेन्द्र-पुष्पक विमान पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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