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३४ पुप्फाहार-केवल पुष्प खाने वाले ३५ बीयाहार-केवल बीज खाने वाले ३६ परिसक्कियकंदमूलतयपत्तपुप्फफलाहार-कंद, मूल, छाल, पत्र, पुष्प, फल-भोजी ३७ जलाभिसेयकढिणगायमूया-विना स्नान के *जन न करने वाले ३८ आयावणाहिं-थोड़ा आताप सहने करने वाले ३९ पंचग्गितावेहि-पंचाग्नि तपने वाले ४० इंगालसोल्लिया-अंगार पर सेंक कर खाने वाले ४१ कंडुसोल्लिया-तवे पर सेंक कर खाने वाले ४२ कट्ठसोल्लिया-लकड़ी पर पकाकर भोजन करने वाले ४३ अत्तुक्कोसिया-आत्मा में ही उत्कर्ष मानने वाले ४४ भूइकम्मिया-ज्वर आदि के दूर करने के लिए भूति (राख, भस्म) देने वाले ४५ कोउयकारया-कौतुक करने वाले ४६ धम्मचिंतका-धर्म शास्त्र को पढ़ा कर भिक्षा लेने वाले ४७ गोव्वइया-गोव्रत-धारक, गाय के पालने वाले ४८ गोअमा-छोटे बैलों का चलना सिखा कर भिक्षा मांगने वाले ४९ गीतरई-गा-गाकर लोगों को मोहने वाले ५०चंडिदेवगा-चक्र को धारण करने वाले, चंड़ी देवी के भक्त ५१ दगसोयारिय-पानी से भूमि को सींच कर चलने वाले ५२ कम्मारभिक्खु-देवताओं की द्रोणी लेकर भिक्षा मांगने वाले ५३ कुव्वीए-दाढ़ी रखने वाले ५४ पिंडोलवा-भिक्षा-पिण्ड पर जीवन-निर्वाह करने वाले ५५ ससरक्खा-शरीर को धूलि लगाने वाले ५६ वणीमग-याचक, घर-घर से चुटकी आटा आदि मांगने वाले ५७ वारिभद्रक-सदा ही जल से हाथ-पैर आदि के धोने में कल्याण मानने वाले ५८ वारिखल-मिट्टी से वार-वार मार्जन कर पात्रादि की शुद्धि करने वाले ।
इनके अतिरिक्त बौद्ध-भिक्षु, वैदिक, वेदान्ती, आजीवक, कापालिक, गैरुक, परिब्राजक, पांडुरंग, रक्तपट, वनवासी भगवी आदि अनेक प्रकार के अन्य भी साधुओं के होने का उल्लेख मिलता है ।।
दि. और श्वे. दोनों ही परम्पराओं के सास्त्रों में ३६३ मित्यावादियों का भी भेद-प्रभेद सहित वर्णन मिलता है, जो कि इस प्रकार है
(१) क्रियावादियों के १८० भेद- जो क्रिया-काण्ड में ही धर्म मानते थे । (२) अक्रियावादियों के ८४ भेद-जो क्रिया-काण्ड को व्यर्थ मानते थे । (३) अज्ञानवादियों के ६७ भेद-जो कि अज्ञानी बने रहने में धर्म मानते थे । (४) विनयवादियों के ३२ भेद-जो कि हर एक देवी-देवता की विनय करने को धर्म मानते थे। इन सब का विगतवार वर्णन दोनों परम्पराओं के शास्त्रों में उपलब्ध है ।।
भ. महावीर के समय में अनेक प्रकार के मिथ्यात्व-वर्धक पाखण्डी पूजा-पाठ भी प्रचलित थे । यहां पर उनमें से कुछ का दिग्दर्शन इस प्रकार है
(१) इन्द्रमह-इन्द्र को प्रसन्न करने वाली पूजन (२) रुद्रमह-महादेव को प्रसन्न करने वाली पूजन (३) स्कन्दमह-महादेव के पुत्र गणेश की पूजन
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