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________________ 27 कि वीर कुमार तो जन्म से ही मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञान के धारी थे । पर भगवान् के पिता को यह पता नहीं था । जब कुछ दिनों के भीतर ही अध्यापक वीर कुमार को लेकर राजा सिद्धार्थ के पास पहुंचा और उनसे निवेदन किया-महाराज, ये राजकुमार तो इतने प्रखर बुद्धि और अतुल ज्ञानी हैं कि उनके सामने मैं स्वयं भी नगण्य हूँ। महाराज सिद्धार्थ यह सुन कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और अध्यापक को यथोचित पारितोषिक देकर विदा किया । दि. मान्यता के अनुसार तीर्थङ्कर किसी गुरु के पास पढ़ने को नहीं जाते हैं । वीर के सम्मुख विवाह-प्रस्ताव जब वीर कुमार ने यौवन अवस्था में पदार्पण किया, तो चारों ओर से उनके विवाह के लिए प्रस्ताव आने लगे। कहा जाता है कि राजा सिद्धार्थ की महारानी प्रियकारिणी और उनकी बहिन यशोदया जो कि-कलिंग-देश के महाराज जितशत्रु को ब्याही थी- एक साथ ही गर्भवती हुईं । दानों साले-बहनोई महाराजों में यह तय हुआ कि यदि एक के गर्भ से कन्या और दूसरे के गर्भ से पुत्र उत्पन्न हो, तो उनका परस्पर में विवाह कर देंगे । यथा समय सिद्धार्थ के यहां वीर कुमार ने जन्म लिया और जितशत्रु के यहां कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम यशोदा रखा गया । जब वीर कुमार के विवाह के प्रस्ताव आने लगे, तब भ. महावीर की वर्ष गांठ के अवसर पर जीतशत्रु अपनी कन्या को लेकर राज-परिवार के साथ कुण्डनगर आये और महाराज सिद्धार्थ को पूर्व प्रतिज़ा की याद दिलाकर यशोदा के साथ वीर कुमार के विवाह का प्रस्ताव रखा' । महाराज सिद्धार्थ और रानी त्रिशला राजकुमारी यशोदा के रूप-लावण्य, सौन्दर्य आदि गुणों को देखकर उसे अपनी पुत्र-वधू बनाने के लिए उत्सुक हुए और उन्होंने अपने हृदय की बात राजकुमार महावीर से कही । सिद्धार्थ के इस विवाह प्रस्ताव को महावीर ने बड़ी ही युक्तियों के साथ अस्वीकार कर दिया । किन्तु श्वे. मान्यता है कि महावीर का विवाह यशोदा के साथ हुआ और उससे एक लड़की भी उत्पन्न हुई, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया और उसका विवाह महावीर की बहिन सुदर्शना के पुत्र जमालि से हुआ । दि. परम्परा में पांच तीर्थंकर बाल-ब्रह्मचारी और कुमार-काल में दीक्षित हुए माने गये हैं-१ वासुपूज्य, २ मल्लिनाथ, ३ अरिष्टनेमि, ४ पार्श्वनाथ और ५ महावीर । श्वे. परम्परा में भी इन पांचों को कुमार-श्रमण और अविवाहित माना गया है, जिसका प्रमाण आवश्यक-नियुक्ति की निम्न लिखित गाथाएं हैं वीरं अरिटुनेमिं पासं मल्लिं च वासुपुज्जं च । एते मोतूण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥२२१॥ रायकुलेसु वि जाया विसुद्धवंसेसु खत्तियकुलेसु । न य इत्थियाभिसेया कुमार-वासम्मि पव्वइया ॥२२२॥ आगमोदय समिति से प्रकाशित आवश्यक नियुक्ति में 'इत्थियाभिसेया' ही पाठ है जिसके कि सम्पादक सागरानन्द सूरि है । टीकाकारों ने इसके स्थान पर 'इच्छियाभिसेया' पाठ मानकर 'ईप्सिताभिषेकाः' अर्थ किया है और उसके आधार पर श्वे. विद्वान् कहते हैं कि इन दोनों गाथाओं में उक्त पांचो तीर्थंकरों के बिना राज्य-सुख भोगे ही कुमारकाल में दीक्षा लेने का उल्लेख है । विवाह से उनका संबंध नहीं है । यदि ऐसा है, तो वे उन प्रमाणों को प्रकट करें- जिनमें कि - - - - - - - - - १. भवान्न किं श्रेणिक वेत्ति भूपतिं नृपेन्द्रसिद्धार्थकनीयसीपतिम् । इमं प्रसिद्ध जितशत्रुमाख्यया प्रतापवन्तं जितशत्रुमण्डलम् ॥ जिनेन्द्रवीरस्य समुद्भवोत्सवे तदाऽऽगतः कुण्डपुरं सुहृत्परः । सुपूजितः कुण्डपुरस्य भूभृता नृपोऽयमाखण्डलतुल्यविक्रमः ॥ यशोदयायां सुतया यशोदया पवित्रया वीरविवाहमङ्गलम् । अनेककन्यापरिवारयारुहत्समीक्षितुं तुङ्गमनोरथं तदा ॥ हरिवंश पुराण, सर्ग ६६, श्लो. ६-८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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