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________________ भ. महावीर का जन्म भ. महावीर का जन्म ईसवी सन् से फाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग था ५९९ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के अपराह्न में हुआ। उस समय उत्तरा एवं शेष ग्रहों की उच्चता कल्पसूत्र की टीका के अनुसार इस प्रकार थीमेषे सूर्य १० । वृषे सोमः ३ मृगे मंगलः २८ । कन्यायां बुधः १५ । कर्के गुरु: ५। मीने शुक्रः २७ तुलायां शनिः २० | तदनुसार भ. महावीर की जन्मकुण्डली यह है १२. Jain Education International ११ सु. १ बु. २ शु. 24 ३ के. १० मं. रा. ४ वृ. १. पादाङ्गप्ठेन यो मेरुमनायासेन कम्पयन् । लेभे नाम महावीर इति नाकालयाधिपात् ॥ २. लहुअसरीरत्तणओ कहेस तित्थेसरो जलुप्पीलं । सहिही सुरसत्येणं समकालमहो खिविज्यंते ॥ २१ ॥ इय एवं कयसंकं ओहीए जिणवरो णाउं । ७ श. し भ. महावीर का जन्म होते ही सौधर्मेन्द्र का आसन कम्पायमान हुआ। शेष कल्पवासी देवों के यहाँ घंटा बजने लगे, ज्योतिषी देवों के यहां सिंहनाद होने लगा । भवनवासी देवों के यहां शंख नाद और व्यन्तरों के यहां भेरी-निनाद होने लगा। सभी ने उक्त चिन्हों से जाना कि भगवान् का जन्म हो गया है, अतः वे सब अपने-अपने परिवार के साथ कुण्डलपुर पहुँचे । इन्द्राणी ने प्रसूति गृह में जाकर माता की तीन प्रदक्षिणा की और उन्हें नमस्कार कर तथा अवस्वापिनी निद्रा से सुला कर और एक मायामयी बालक को उनके समीप रख कर भगवान् को उठा लाई और इन्द्र को सौंप दिया । वह सर्व देवों के साथ सुमेरु पर्वत पर पहुँचा और ज्यों ही १००८ कलशों से स्नान कराने को उद्यत हुआ कि उसके मन में यह शंका उठी- 'यह बालक इतने जल का प्रवाह कैसे सहन कर करेगा ? भगवान् ने अवधि ज्ञान से इन्द्र के मन की शंका जान ली और उसके निवारणार्थं अपने बायें पांव के अंगूठे से दबाया कि सारा मेरु पर्वत हिल उठा । इन्द्र को इसका कारण अवधि ज्ञान से ज्ञात हुआ कि दूर करने के लिए ही भगवान् ने पांव के अंगूठे से इसे दबाया है, तब उसे भगवान् के अतुल पराक्रमी होने का भान हुआ और उसने मन ही मन भगवान् से क्षमा मांगी। , - मेरु पर्वत को जरा सा मेरे मन की शंका को ———— ६ चं चालइ मेरुं चलणंगुलोए बल - दंसणट्टाए ॥३॥ (महावीर चरिउ, पत्र १२० ) ३. तओ दिव्वनाण-मुणिय जिणचलण- चंपणुङ्कपिय मेरुवइयरो तक्खणं संहरियकोवुग्गमो निदियनियकुवियप्पो खामिऊण बहुप्यारं जिणेसरं भगवंते...... भणिठमाढतो । (महावीरचरिउ, पत्र १२१ ) (पुद्मपुराण, पर्व २ श्लो. १ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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