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________________ Prerrerr211Torrentre सोऽसौ स्वशिष्यगुरुगौतममात्मनीने कैवल्यशर्मणि नियुक्त मगादहीने कृ त्वेति सिद्धवनितामनुतामचिन्तः रे मे स्म किं पुनरुदीक्षत इङ्गिनी तत् ॥२४॥ वे भगवान् महावीर अपने महान् केवलज्ञान मयी अनन्त सुख रूप सिंहासन पर अपने प्रधान शिष्य गौतम गणधर को नियुक्त करके गये, इसलिए उन्हें हम लोगों के संभालने की चिन्ता न रही और इसी कारण वे उस आनन्द-दायिनी मुक्ति-वधू के प्रेम में अनन्य रूप से संलग्न हो गये ॥२४॥ श्रीमान् श्रेष्ठ चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामले त्याह्वयं वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीयतम् । तस्या सावुपयाति सर्ग उत सा चन्द्राक्षिसंख्ये कृतिः सम्प्राप्ते शरदागमेऽनु समभूद्वीरप्रभुर्निवृतिम् ॥२१॥ इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुज और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए, वाणी-भूषण, बाल-ब्रह्मचारी, पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर विरचित इस वीरोदय काव्य में भगवान् महावीर के निर्वाणगमन को वर्णन करने वाला इक्कीसवां सर्ग समाप्त हुआ ॥२१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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